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________________ गु०भा० गु०मा० // 76 AatviaVe/otsavitaanusavtate/ Ae/atesanetse/M अपाय दृष्टांत देखामी संयममार्गमां स्थिर करे; ते स्थविर त्रण प्रकारें . एक शाठ वर्षना ते वयःस्थविर; बीजा वीश वरसदीदा पर्याय जेने थयां होय ते पर्यायस्थविर; त्रीजा जे निशीथादिक छेदग्रंथना रहस्य जाणे; जघन्यथी समवायांगादि श्रुत जाणे; ते श्रुत स्थविर पण श्हांतो जेने आचार्यादिकें स्थविर कीधा होय ते स्थविर जाणवा. तथा रत्नाधिक ते गबने काय शिष्य उपधिप्रमुख लाननें अर्थे विहार करण शील सूत्रार्य वेत्ता एजें गणावछेदक एवं पण नाम कहीयें एवा गुणवंत ते पर्यायें ज्येष्ठ अथवा लबु होय तो पण तेने रत्नाधिक कहीयें. एटले पांच वंदनिकनुं चोयुं हार थयु. उत्तर बोल वीश थया // 13 // हवे चार जण पासे वांदणां न देवरावां तेनुं पांच, हार तथा चार जण पासे प्रायः . वांदणां देवरावेवां; तेनुं हुं धार; ए बे छार साथे कहे जे. माय-माता | अउमावि-वयादिके लघु होय किइकम्म-वांदगां कुणंति-करे पिअ-पिता | तहेव-तेमज [पण न कारिजा-नकरावे . पुणो-वली निभाया-महोटोभाइ सवरायणिए-सर्व रत्नाधिक चप्समणाई-चार श्रमगादिक dahavivaasiVAHANIWatewiveDANG/RADAINIVITANOAtAasANGANA For Personal & Private Use Only
SR No.004260
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalabhai kakalbhai
PublisherBalabhai kakalbhai
Publication Year1912
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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