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________________ BIOGRADHVIRMIDDOOGDRoome/RBANDAINVI इतरहेत ते विशेष हेतरूप त्रीजी संपदा जाणवी, पठी आद्य संपदाना अर्थने विशेषे दीपावे एटले सामान्य स्तवनानो उपयोग तेनुं कहे, ते चोथी उपयोग संपदा जाणवी. | पड़ी ए उपयोग संपदानाज अर्थने हेतुलनावें करी दीपावे ते पांचमी तत् हेतु संपदा जाणवी, अथवा उपयोग हेतु संपदा जाणवी, पछी एज उपयोग हेतु संपदाना अर्थ गुण दीपाववा निमित्तें अर्थ विशेषे जणावे एटले कारण सहित स्तववा योग्यतुं स्वरूप कहेवु ते ही सविशेष उपयोग हेतु संपदा जाणवी, पत्री ययार्य पोताना स्वरूपन हेतु प्रकटार्य देखावारूप सातमी स्वरूप हेतु संपदा जाणवी, तथा पोताने समान फलदायक प्रकटार्थ रूप एटले स्तवना करनारने आपतुल्य करे एवी परम फलदायिनी एटले पोतानी समान परने फलनुं करण एटला माटे श्रापमा निजसमफलदनामे संपदा जाणवी, तथा मोद स्वरूप प्रकटार्थ रूप मोक्षपदन स्वरूप, एटला माटे नवमी मोद संपदा जाणवी. जे माटे कयु डे के " सवन्नूआई पढमो, बी सिवमयल माइ लावो // तन नमोजिणाणं जिय जयाणं तन्निदिहो // 1 // इत्यावश्यके // 35 // कanuarAmADVERam/aagaawaranaDARET/aula For Personal Private Use Only
SR No.004260
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalabhai kakalbhai
PublisherBalabhai kakalbhai
Publication Year1912
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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