________________ A AMR/item/aucrateItAIVE D EKAAMVasaviMVAMBeatsaveventiaWARVINAGVANIAMENTANDROME इच्छाय अणुन्नवण्णा, अबाबाहं च जत्त जवणाय // अवराहखामणाविय, वंदणदायस्य छठ्ठाणा॥३३॥दार॥१९॥ शब्दार्थः-इच्छामि खमासमणी आदि पांच पदनुं प्रथम स्थानक, अणुजाणहमे मिउग्गह, एत्रण पदनुं बीजुं स्थानक " निसीही" आदि बार पद त्रीजुं स्थानक जत्ता ए वे पदनुं चोथु स्थानक “जवणिजंचभे" ए त्रण पदनुं पांच मुं स्थानक " खामेमिखमाप्तमणो" आदि चार पदनुं छटुं स्थानक ए वंदननां दायकनां छ स्थानक जाणवां // 33 // विस्तारार्थः-छामि खमासमणो वंदिउ जावणिकाए निसीहियाए लगे पांच पदनुं प्रथम स्थानक जाणवू, तथा अणुजाणह मे मिनग्गरं ए त्रण पदनुं बीजुं स्थानक, तथा अव्याबाध एटले निराबाध पणुं पूबवा अर्थे निसीहिथी मामीने दिवसो वश्कतो पर्यंत बार पदोनुं त्रीजु स्थानक जाणवू, तथा जत्ता ने ए बे पदोनुं चो, स्थानक, तथा जवणिकं च ने ए त्रण पदनुं पांचमुं स्थानक, तथा अपराध- खमावq एटले खामेमि खमासमणो देवसियं व कम्म ए चार an GAANDowwjanavar Jain Education International For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org