________________ शुभा० गुरुमा 11.2 // Vaamaniawaaoraswamvas/AR हेतुये जे गुरूये अर्थ कह्यो होय तेहिज अर्थ वली विशेषथी विस्तारी चर्ची देखामीने कहे तो श्राशातना काय, त्रीशमी गुरूनी शय्या तथा संथाराने पोताना पादादिके करी संघ तेने खमावे नही तो आशातना थाय, श्हां शय्या ते सर्वांग प्रमाण जाणवी, अने संथारो ते अढी हाथ प्रमाण जाणवो, अथवा शय्या ते कर्णादिवस्त्रमय जाणवी, अने संथारो ते दर्नादिक तृणमय जाणवो. एक त्रीशमी गुरूनी शय्या संथारो तथा बेसणादिकने विषे तिष्ठेत् एटले बेसे, अथवा बालोटे असन्य शरीरने अवयवे करी फरसे, तो श्राशातना थाय, बत्रीशमी गुरूथी उंचे श्रासने बेसे, अथवा अधिक बेसणे बेसे तथा गुरू जेवां वस्त्र पहेरे, तेथकी अधिक मूल्यवाला वस्त्रादिकनो परिनोग करे, तो आशातना थाय, तेत्रीशमी गुरूने समान आसने बेसे, अथवा गुरूना जेवां वस्त्रादि होय, ते वांज समान वस्त्रादिकनो परिनोग करे तो आशातना थाय बे. इहां अपिशब्द निश्चयवाचक , तथा गुरूने आगल अने पाबल तथा बे बाजुये बेसवादिकनी अाशातना तो पूर्वे कहेली ए तेत्रीस आशातना टालतो थको शिष्य विनयी कहेवाय, ते शिष्य वांदणां देवा RavanaJAVARGONAu/tag/ranaswana/AVARGO/AROO asanaentertaiwasety // 202 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org