SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्दार्थ:-२६ तमने नथी सांभरतुं ? एम कहे, 27, कथानो च्छेद करे, 28 सभानो भंग करे, 29 गुरुये कहेली वात फरी पोते कहे, 30 गुरुना संथारे पग लगाडे, 31 गुरुनी शरपा संथारा के आसन पर बेसे, 32 गुरुथी उंचा आसने बसे, 33 गुरुना समान आसने चेसे. // 37 // SVANIN VataryamarateavenaSaveDARATVIRPATANJEEDOM विस्तारार्थः-बबीशमी जेवारे गुरू कथा करता होय ते वारे कहे के तमने ए अर्थ नथी सांनरतो ? था अमुकनो अर्थ एम न होय. एवी रीते कहेतां आशातना लागे. सत्तावीशमी गुर्वादिक कथा करता होय तेनी वचमां पोतार्नु माहापण जणाववाने अर्थे सन्य लोकने कहे के ए कथा हुं तमने पनी समजावीश एम कही कथानो छेद करे, ते आशातना जाणवी, अहावीशमी गुरू कथा कहेता होय अने तेने सन्य लोक हर्षवंत हृदयथी सन्निलतां होय ते सत्य जनोने देखतां उतां गुरूने कहे के एवमी शी कथा कहो बो? हमणां निदानो अवसर , नोजनवेला पोरिसि वेला डे, एम कही पर्षदानो नंग करे तो आशातना थाय, उंगणत्रीशमी गुर्वादिक धर्मकथा कही रह्या पनी पर्षदा अपनवे थके तेज कथाने पोतानुं माहापण जणाववाने NDON Jan Education international For Personal & Private Use Only
SR No.004260
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalabhai kakalbhai
PublisherBalabhai kakalbhai
Publication Year1912
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy