________________ गु०भा० ग० // 10 // asavetsevereasesas/ गुर्वादिक तेने कहे के हे शिष्य ! तमे बालसु न था. ते वारे वली गुरूने कहे के तमे ते | अमनेज दीठा ले ? एवी रीतनां वचन बोलीने गुरूनी तर्जना करे ते श्राशातना जाणवी. पच्चीशमी गुर्वादिक धर्मकथा कहेता होय तेवारे शिष्य उमणो थाय परंतु सुमनो न थाय, गुर्वादि. कना गुणनी प्रशंसा करे नही अने कहे के तमे गृहस्थने विशेष प्रकारे समजावो डो, ते रीते अमने समजावता नथी अथवा गुर्वादिक तथा रत्नाधिकनो जे रागी होय तेने देखीने दुमणो थाय ते आशातना जाणवी // 36 // .. नोसरसि-नयी सांभरतो | अणुद्धिा -अणउठेथके . थारे पग लगाडे समासणेयावि-गूरुने सम ना कहच्छित्ता-कथानो च्छेद करे| कही-कहे चिठ्ठ-वेसे आसने वेसे परिसंभित्ता-सभानो भंग करे | संथारपायघट्टण-गुरुना सं- उच्च-उंचे आसने BREVEDOBJasaviROVEDVDIA/same/SAN PANDEReseaw नो सरसि कहं च्छित्ता, परिसंभित्ता अणुट्टियाइ कहे॥ संथार पाय घट्टण, चिठ्ठच्च समासणे आवि ॥३७॥दार॥११॥ 10 For Personal & Private se Only