________________ चै०भा० च: भा पडिक्कमिउ गिहिणोवि हु, सगवेला पंचवेल इअरस्स // पूआसु तिसंझासु अ, होइ तिवेला जहन्नेणं // 6 // dovai/ARGADGEOREpisadivat शब्दार्थ-पडिकमण करता एवा गृहस्थने पण सात वखत अने न करनाराने पांच वखत चैत्यवंदन करवू. वली जघन्यथी तो त्रणे संध्याये पूजाना अवसरे त्रण वखत चैत्यवंदन करवू. // 60 / / विस्तारार्थः-एक प्रनाते अने बीजो सांके ए वे वार परिक्कमणुं करता एवा गृहस्थने पण निश्चे यतिनी पेरें सात वार चैत्यवंदन थाय. तथा जे एक वार पमिकमणुं करता होय एवा गहस्थने पांचवार चैत्यवंदन थाय; तेमां एक पोरिसि सांजलता; एक क्रिया करतां अनेत्रणवार देव वांदता मली पांच घाय. अने तेथी इतर एटले जे पमिकमा नथी करता एवा गृहस्थने तो प्रनात; सांऊ अने मध्यान्हे ए त्रण संध्याये जाने विषे ए जघन्यथपण गृहस्थने माटें व्रण शर चैत्यवंदना होय. ए सात प्रकारना चैत्यवंदन-वीशमंदार पूर्ण श्रद्यु. उत्तर बोल 2064 थया॥६॥ -17 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org