SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Nawaanwaewwesaaucravdeavate/PGD/ हवे ए पांचवें कांश्क विशेष स्वरूप लखीये बैये. तिहां मिथ्यात्वादिक बंध || हेतुरूप पास तेने विषे जे रहे, तेने पासबो कहीयें. अथवा झानादिकनें पोतानी पासें करी मिथ्यात्वादिक पासमा रहे एटले ज्ञानादिकने पासे राखे पण सेवे नही, अथवा पासनी पेरें पोतानुं | पासुं मलिन राखे ते पासबो कहीये. तेना के नेद -एक देश पासबो अने बीजो सर्वपासलो. तेमां जे कारण विना शय्यातर पिंक, अन्याहृत एटले साहामो आण्यो पिंक, राज्यपिम, नित्यर्पिम अने || अग्रर्पिमादिक नुंजे. तथा गाम, देश, कुल श्रावकनीममता मांझे, जेम के "था महारा वासितना व्या 3" ते कुलादिकनी निश्राये विचरे, तथा गुर्वादिकने जे विशेष नक्तियोग्य रहस्यनूत थापना | कुल , ते कुलमांदे निष्कारणे प्रवेश करे, तथा "नित्यप्रत्ये तमने एटवू देश्शुं तमे नित्य आवजो" | एवीरीतनी जे निमंत्रणा करे तेनी पासें ते पिंमलीये तेने नित्य पिंक कहीये. तथा नाजनमांदेथी वापरया विना उंदन नक्तादिकनी शिखा उपरितन नाग लक्षण लीये, तेने अप्रपिंम कहिये. के. टलाएक एम कहे जे के कारण विनाप्रधान सरस आहार लोये तेने अप्रपिंकहिये.तथा बहेंतालोश Sardaaivatego/anilevateerwasanaoncotes/tract/ARNDI mawara Jain Education International For Personal & Private Use Only www.alby Dig
SR No.004260
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalabhai kakalbhai
PublisherBalabhai kakalbhai
Publication Year1912
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy