________________ WatAGurindava ०भा० सु०भा० // 72 // dase/OD65DIADDEDi | दोष आहारना न राखे, वारंवार आहार लीये तथा जमणवार, विवाह अने प्राहणामां शिखंमि जोतो फरे, थाहारनी लालचे मुखें कहे. तिहां निमित्त दोष न होय, सूजतो होय ते माटें| तथा सूर्य श्राथमता उगताथी मामी जमे, मांगलीये आहार न करे, सन्निधि राखे, पोतानी | निश्रायें औषधादिक अलगु गृहस्थने घरे मूकावे, अव्यादिक सहित विचरे, तथा ज्ञान | अव्यादिक मिषे करी स्वनिश्रायें ज्ञानादि मारनां नाम लेई, पुस्तकादि संग्रहे, व्यादि सहित विचरे, मुखे कहे अमे निग्रंथ बैये पूर्व साधु समान गर्व राखे. इत्यादिक अनेक प्रकारे साधु लक्षणथी विपरीत होय ते देश पासबो जाणवो.. तथा जे सर्वथा ज्ञान, दर्शन अने चारित्रथी अलगो रहे, केवल सिंगधारी, वेषविमंबक, | गृहस्थाचार धारी होय, ते सर्वथी पासबो जाणवो.. . बीजो जे क्रियामार्गने विषे शिथिलता करे, अथवा खेद पामे तेने उस्सन्नो कहीयें; तेना | बे नेद ले. एक देशथी अवसन्नो अने बीजो सर्वथी अवसन्नो, तिहां जे आवश्यक, प्रतिक्रमण, a SEVasavarEANSamaveena S72 // STATIPetoots inin Education international For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org