________________ चै०भा० चै०भा // 19 // इय पंचविहाभिगमो, अहवा मुच्चंति रायचिन्हाई॥ / खग्गं छत्तोवाणह, मउडं चमरे अ पंचमए // 21 // postRDPREVIma-RANDame/SsPMTMAIPUDAapan शब्दार्थः-ए पूर्व कहेला पांच प्रकारना अभिगम देवगुरु पासे आवतां साचवा. अथवा राजचिन्ह त्यनी देवां. ते राजचिन्ह आ प्रमाणे. 1 खड्ग, 2 छत्र, 3 मोजडी, 4 मुकुट, अने 5 चामर. // 21 // विस्तारार्थः-ए पूर्वली गाथामांकह्या जे पांच प्रकारें अनिगम ते देव तथा गुरु पातें श्रावतां साचववा अथवा वंदना करनार श्रावक जो पोते राजादिक होय तो ते ए पांच अन्निगम साचवे, अने वली बीजां राजानां पांच चिह्न जे ते प्रत्ये मूके एटले डांमे तेनां नाम कहे , एक खड्ग, वीजें बत्र, त्रीजुं उपानह एटले मोजमी, चोथो माथानो मुकुट अने पांचमुं चामर, ए पण पांच | अनिगम जाणवां // 31 // एटले पांच अनिगमनुं बीजं घार पूर्ण थयु // उत्तर बोल पांत्रीश थया. हवे बे दिशिनुं त्रीजु द्वार, तथा त्रण अवग्रहनुं चोद्वार कहे बे॥ 18HD Mostestrarapes/et/p/PDai. 19 // inin Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org