________________ वंदंति-वांदे जिणे-श्री जिनने दाहिण-दक्षिण .. ठिया-रहीने पुरिस-पुरुषो. वामदिसि-डावे पासे नारी-स्वीजन नवकर-नव हाथ जहन्नु-जघन्य सठिकर-साठ हाथ | जि-उत्कृष्ट मज्झुग्गहो-मध्यम अवग्रह सेसो-शेष दिसि-दिशाए MosAp/anyavaaranasacootv900/06/seasee वंदंति जिणे दाहिण-दिसि ठुिआ पुरिस वामदिसि नारी॥ नवकरजहन्नु सठ्ठि-करजिट्ट मझुग्गहो सेसो // 22 // दारं॥३-४॥ rawanpasans/mapsOSDADAJDoooomasan शब्दार्थ-जिनेश्वरनी दक्षिण दिशा एटले जमणी वाजुये उभा रहीने पुरुषो वंदना करे अने वामदिशा एटले डावी वाजुए उभा रहीने स्वीयो वंदना करे. प्रभुथी नवहाथ दूर रहेवाथी जवन्य, साठ हाथ रहेबाथी उत्कृष्ट अने नव तथा साठनी अंदर उभा रहेवाथी मध्यम अवग्रह थाय छे. // 22 // विस्तारार्थः-श्रीजिनने दक्षिणदिशिस्थिता एटले मूल नायकनी जमणी दिशायें रह्या थका पुरुषो वांदे एटले चैत्यवंदना करे, अने मूल नायकने माबे पासे रही थकी स्त्रीजन वांदे, एटले Jain Education International For Personal & Private Use Only www. by.org