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________________ प० भाल प.भी. 132 // बीजा सर्वत्र स्थानके पच्चख्खाण पालवानी यत्ना राखवी. अन्न ए पद सर्वे आगारे जोमवं, | एम जाणवू, तथा अनानोगात् एटले वीसरवाथकी अर्थात् पच्चखाणनो उपयोग वीसरते अजाणतां कांश मुखमा प्रक्षेप करा जाय, पडी पच्चख्खाण सन्निरी आवे, तेवारे तरत मुखथकी त्याग करे, तेथी पच्चरकाण नंग थाय नहीं, अथवा अजाणे मुखथकी हे उतयुं पडी कालांतरे अथवा तुरत स्मरणमां आवे तोपण पच्चस्खाणनो नंग थाय नही परंतु शुद्ध व्यवहार बे, तेथी फरी निःशंक न थाय ते माटे यथायोग्य प्रायश्चित्त लेवं. ए वात श्रागारोने विषे जाणवी. माटे | अहीं पीविकारूपे लखी.... बीजो सहसात्कार ते पोतानी मेले श्रावी मुखमांहे प्रवेश करे ते जाणवू. एटले पञ्चख्खाण की, ले तेनो उपयोग तो वीसरयो नथी, पण कार्य करवाना प्रवर्तनयोग लक्षण सहसात्कारे खन्नावेज पोताना मुखमां का प्रवेश थजाय. जेम दाध मथतां थकां बांटो उमीने मुखमां पमी जाय, तथा चनविदार उपवास होय, अने वषांकालमां मेघनो बांटो मुखमा पमीजाय, ता पच्चरकाण नांगे नहीं. Jan Education international For Personal Private Use Only
SR No.004260
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalabhai kakalbhai
PublisherBalabhai kakalbhai
Publication Year1912
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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