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________________ घicatoudacance/temp/GO/ARG/G9GVAGanesama विस्तारार्थ-तिहां प्रथम देव वांदतां पाप टले ले ते पाप टालवाना उत्तरीकरण प्रमुख चार || बे, ते कहे जे. एक तस्सउत्तरीकरणेणं एटले पापने बालोववे करीने अर्थात् पापकर्म निर्घातन करवे करी, बीजो पायबित्तकरणेणं एटले अनिहया पदथी उपन्यु जे प्रायश्चित्त ते लेवे करी, त्रीजो विसोहिकरणेणं एटले राग द्वेषनुं टालवू अतिचार टालवानी विशुद्धि करवे करी, चोथो विससी करणेणं एटले माया मात्सर्यादि वर्जवे करी मन वचन कायानी निःशस्यत्व त्रिकाल | अतीत अनागत वर्तमानने विषे अरिहंतादिक षट्पद साथें पापकर्म टालवे कानस्सग्गनुं फल आपे ए चार उत्तरीकरणादि निमित्त कह्यां तथा श्रद्धादिक वली पांच हेतु डे तेनां नाम कहे , सद्धाए, मेहाए, धिईए, धारणाए, अणुप्पेहाए; एटले एक श्रद्धा, बीजी मेधा एटले बुद्धि, त्रीजी | धृति एटले चित्तस्वस्थता, चोथी धारणा ते यथाकिंचित् शिक्षा ग्रहणता, पांचमी अनुपेक्षा ते | तदेकाग्रता, ए सर्व पांचे वानां वधते थके पांचहेतु जाणवा तथा वेयावच्चकरत्वादिक वेश्रावच्चगराणं संतिगराणं, सम्मदिति समाहिगराणं ए त्रण हेतु करे, ते कहे जे. एक वैयावच्चकर सम्य dewwwdo/howdodcom/avoupARODE Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org
SR No.004260
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalabhai kakalbhai
PublisherBalabhai kakalbhai
Publication Year1912
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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