________________ भ चै०भा० // 49 // चैत्यवंदनने विषे करवो ए निमित्त आठ जाणवां. ते देववंदनने विषे होय. ए आठ निमित्तनुं सत्तरमुं द्वार पूर्ण थयु. उत्तर बोल 2007 थया // 53 // हवे बार हेतुर्नु अढारमुं धार कहे . चउ-चार | पमुह-प्रमुख पणहेउ-पांच हेतु तस्स-ते सद्धाइआ-श्रद्धादिक वेयावच्चगरत्ताई-वेयावच्चग- हेउ-देतु उत्तरीकरण-उत्तरीकरण य-वली . तिनि-त्रा [राणं इत्यादीक बारसगं-बार चउ तस्स उत्तरीकरण-पमुह सद्धाइ आय पण हेउ॥ वेयावच्चगरताइं, तिन्नि इअ हेउ बारसगं // 54 // नारंर॥ शब्दार्थ-ते पापनो नाश करवा पाटे उत्तरीकरण विगेरे चार छ भने श्रद्धादिक हेतु पांच छे. वली वैयावचगराणं इत्यादि रण हेतु छे. ए सर्व मली बार हेतु चैत्यवंदना थाय छे. // 54 // patauDRED/PareeDom/aamaHAMDARD/4/ Jain Education n ational For Personal & Private Use Only