________________ चै०भा० // 43 // Ne/0BATANTRIANDIGe/ चै०भा० DP/IAS/ नवमे अर्थे अनुत्तर, अवेयक, विमानवासी अने ज्योतिषी ए चार स्थानक ऊर्ध्वलोके ले तिहांनां चैत्य तथा आठ व्यंतरनिकाय, दशनवनपति, ए अधोलोकनां चैत्य तथा मनुष्यलोकमां तो शाश्वती अने अशाश्वती प्रतिमा ए त्रण लोकनां चैत्य वांद्यां. एवी रीते ए गाथा मध्ये सर्व तीर्थवंदना लक्षण अर्थ घणा , ते सर्व वसुदेवहिंग प्रमुख ग्रंथोथी जो लेवा. अहींयां विस्तार घणो थाय माटे लख्या नथी॥४५॥ नव- नव ल लिअविथ्थरा-ललित विस्तरा| तिण्णि-त्रण दसमो-सदमो अहिगारा-अधिकार वित्तिआइ-वृत्ति आदिकना | सुयपरंपरया-श्रुतनी परंपराथी| इगारसमो-अगीआरमो अणुसारा-अनुसारे . --- | बीयउ-चीजो | आवस्सय-आवश्यकनी नव अहिगारा इह ललि-अवित्थरा वित्तिआइ अणुसारा॥ तिण्णि सुयपरंपरया, बीयउ दसमो इगारसमो // 46 // AutDARDAMBAAD/AAMVAADAARADATANDARVARDARDAN D/08/RSD/MARATDAEEV // 43 // For Personal Private Lise Only