________________ Saamanaris गु०भा० गु०भा० // 105 // tmatertaiterautomaAswal अप्पमइभवबोहत्थं, भासियं विवरियं च जमिह मएं॥ तं सोहंतुंगीयत्था, अणभिनिवेसि अमच्छरिणो॥४१॥ - शब्दार्थ-अल्पमति एवा भव्य जीवोना बोधने अर्थे में अहिं जे कांड विपरीतपणे कहेलं होय तेने कदाग्रह रहित | अने मत्सर रहित एवा गीतार्थ पुरुषो सुधारी लेजो // 41 // विस्तारार्थः-आ वांदणांनो विचार ते अल्प डे मतिजेहनी एवा जे नव्य प्राणी तेमना बोध झानने अर्थे नांख्यो परंतु आवश्यक बृहकृत्यादिक ग्रंथने विषे एनो अत्यंत विस्तार बे. त्यांथी विशेषे जोवू, इहां संदेपथी कह्यो . ते मांहे जे अनानोगें विपरीतपणे वली जे ए नाष्यमांहे महाराथी कहेवाणुं होय तेने वली अकदाग्रही एटले हग्वादरहित एवा अने मत्सरपणाना परिणामें रहित, गुणना रागो एवा जे गीतार्थ एटले गीतना अर्थ तेना जाण, अर्थात् सूत्रार्थना जाण तथा निश्चय व्यवहारने विषे कुशल होय ते शोधजो, अर्थात् शुद्ध करजो. ए Ons het 3086/ in Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org