________________ चै०भा० चै०भा० पांचमी प्रजुनी पिंमस्थावस्थादिक अवस्थात्रयनुनाववं ए निश्चं जाणवं, तिदिसि-त्रण दिशिनी | पमज्जणं-प्रमार्जन लंबन त्रण तिविहं-त्रण प्रकारे निरखण-जोर्बु च-बली च-वळी च-बली विरई-विरती, नीयम तिख्खुसो-त्रणवार कर मुद्दतियं-त्रण मुद्रा पणिहाणं-प्रणिधानने पयभूमि-पग मूकवानी भूमीन बनाइत्तियं-वर्णादिकना आ-| DBDDODom/wDODARDPREDATEGMEN तिदिसि निरख्खण विरई, पयभूमि पमजणंच तिख्खुत्तो॥ वन्नाइतियं मुद्दा-तियं च तिविहं च पणिहाणं // 7 // raniwas/arwasnasewaresaw-one शब्दार्थ-६ त्रण दिशामा जोवानुं विरमण अने ७त्रणवार पग मकवानी भूमिर्नु प्रमार्जन, 8 वर्णादिकनुं आलंचन, 9 वली ऋण मुद्रा भने 10 ऋण प्रकारनुं प्रणिधान. ए दशत्रिकनां नाम जाणवां // 7 // विस्तारार्थ-बही चार दिशिमांथी मात्र नगवान् जे दिशियें बेठेला होय, तेज एक दिशिनी सामुं| जोवू, अने शेषत्रण दिशिनी सन्मुख जोवानुं विरमण करवू, सातमी पग मूकवानी नूमिनुं प्र-||६|| Jain Education International For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org