________________ अन्ने बिति गेणं, सकथएणं जहन्नवंदणया // तदुगतिगेण मज्झा, उक्कोसाचउहिं पंचहिं वा // 24 // दारं 5 VaierarsanaSROREma-opGO/Amawas शब्दार्थ-केटलाक आचार्यों एम कहे छे के, एकवार नमुत्थुगं बोलवाथी जघन्य, बे अथवा त्रणवार नमुत्थुणे बोलबाथी मध्यम अने चार अथवा पांचवार नमुत्थुगं बोलवाथी उत्कृष्ट चैत्यवंदन थाय छे. // 24 // विस्तारार्थः-अन्य एटले वीजा वली केटलाएक आचार्य एम ब्रुवंति एटले कहे बे के एकेन एटले एक शक्रस्तवें करीने देव वांदी ते जघन्य चैत्यवंदना जाणवी. अने तद्धिकत्रिकेण एटले तेहीज बे तथा त्रण शक्रस्त करी मध्यम चैत्यवंदना जाणवी. तथा चार शक्रस्तवें करी अयवा पांच शकस्तवें करीने प्रणिधान युक्त करीये ते उत्कृष्ट चैत्यवंदना जाणवी, अने नाष्यादिकने विषे स्तुति युगल कयां , ते त्रण थुइ स्तुतिरूप एक गणीय बैयें. अने चौथी थुइ शिक्षारूप समकेतदृष्टिनी सहायरूप जुदी गणी ते माटें स्तुति युगल कहे , तेनो विचार Mangalwal/BAnswarasvaruVampeama Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org