________________ नु०भा० गु०भा० // 77 // Varawataapanajarsdraatsapwapsowaupasanasomamera तथा वार श्रमणादिक एटले साधु साध्वी; श्रावक अने श्राविका ए चार जण ते कृतिकर्मने वली करे एटले ए चार जण वांदणां आपे. ए ब वांदणां देवा योग्य चार जण तेनुं द्वार थयु. उत्तर बोल असावीश थया // 14 // _ हवे पांच स्थानकें वांदणां न देवां, तेनुं सातमुं हार कहे . विख्खित्त-विक्षिप्त | गाकयाइ वंदिज्जा-क्यारे पण | नीहार-नीहार | कामे-कामना, इच्छा पराहुत्ते-परागमुख चांदवा नहि कुणमाणे-करता होय अ-वली पमत्ते-प्रमादी आहारं-आहार | काउ-करवानी REACTIVIRAGYAmateuteritocraNAAGINORMATINESe/4OM/Aadiwan विख्खित्त पराहुत्ते, पमत्ते मा कयाइ वंदिजा॥ आहारं नीहारं, कुणमाणे काउ कामे अ॥ 15 // दारं / / शब्दार्थ-गुरु व्यग्र चित्तवाला, बीजी बाजु मुख करी बेठेला, क्रोधवाला अथवा मूतेला, तेमन आहार अने नौहार करता होय अथवा करवानी इच्छा करता होय तो न वांदवा. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.ebay.co