________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्रांधी
श्रध्यारी- देखो 'अंधारी' ।
ब्रांप्यारी-देखो 'अंधारी' (स्त्री० [अंधियारी) ।
। - । [२] बंधी प्रारसी स्त्री० धुंधला दर्पण घोपड़ी
।
वि०सूर्य, भांडू, निर्बुद्धि डंबर- पु० तूफान, -- डूडळ, भंझावात बाई - स्त्री० नेत्रहीन स्त्री। एक बात रोग विशेष |
|
श्रांधौ - ( नेत्र वि० [सं०] [प] [स्त्री० प्रांधी) १ नेष होन, दृष्टिहीन अंधा । २ विवेकहीन, अज्ञानी । ३ लापरवाह, बेपरवाह । ४ धुंधला, अस्पष्ट । पु० वह प्राणी जिसकी प्रांखों में ज्योति न हो । -काच- पु० धुंधला काच । - कूश्री- पु०
सौ-पु० एक देशी खेल
www.kobatirth.org
( ११ )
आंध्र पु० भारत का एक प्रान्त ।
- स्त्री० [सं० प्राणि] १ मर्यादा, प्रतिष्ठा । २ शान-शौकत । ३ अदब- लिहाज । ४ टेक, इज्जत । ५ प्रतिज्ञा पत्र | - वि० ग्रन्य दूसरा । क-पु० नगारा, ढोल । मृदंग । भेरी, दुंदुभी गरजता बादल - द्व, ध-पु० नगारा, ढोल । - वि० मंढा हुआ, कसा हुआ । घनन पु० [सं०] धानन] चेहरा, मुख, स्पा०
-
सिंह, शेर। महादेव शिव ।
श्रांनाकानी स्त्री०१ अस्वीकृति । २ टालमटूल । ३ सुनी-अनसुनी । ४ मनाही । क्रि० वि० इधर-उधर । ना-देखो 'पद' ।
श्रांनादेस - पु० [सं० अन्यदेश] अन्य देश, विदेश, पराया देश । श्रांनी कानी-क्रि०वि० ० इधर-उधर, सर्वत्र |
नुरवी स्त्री० [सं० धानुपूर्वी] नाम कर्म की १४ प्रकृतियों में से एक जो वक्रगति से जन्मांतर गमन के समय जीव को आकाश प्रदेश की सी के अनुसार गमन कराती है (जैन) इनको इन्हें । २ देखो 'यांनी' । श्रांनेक- देखो 'अनेक' ।
श्रांनं सर्व० इन्हें इनको ।
घांनी पु० [सं०] धारणक] १ एक सिक्का जो रुपये का गोलहवां हिस्सा होता था, इकन्नी । २ एक सेर का सोलहवां भाग, एक तौल। छटांक ।
या देवो'धारण' ।
श्रांपारौ सर्व० • अपना हमारा ।
आपे सर्व हम अपन
0
,
क्रि०वि० स्वतः । श्रांब- देखो 'ग्रांम' । -खास = 'ग्रांमखास' ।
यांवर देखो 'अंवर'
(ख) - अपने
श्रांपणौ, ( प्रांपांणी) -- सर्व० [सं० आत्मन् ] ( स्त्री० प्रांगी
पांणी) अपना ।
श्रीषा - सर्व० प्रपन, हम ।
।
।
थांबली देवी यांनी' आंबाडी देखो 'अंबाडी' |
-
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रामनौ
बाहळद, (हळदी) स्त्री० कपूर हल्दी जो चौषधि में काम प्राती है ।
व्रत
धांबिल पु० [सं० प्राचाम्य] १ यत विशेष जिसमें रूखा-सूखा दिन में एक बार खाया जाता है (जैन) २ रंग परित्याग नामक तप का एक भेद |
बिल वरधमान एक प्रकार की तपस्या । प्रांजली (ब)- १ शरीर में ऐंठन
(जैन) । प्राना २ पेट में
विकार होना । ३ खटाई थाना । ४ दांतों में खटाई बैठना । ५ कंकरीली भूमि में चलने से पैरों का सूत्र होना बीहळद- देखो 'प्रवाहळदी' |
श्रांबी- पु० [सं० ग्राम्र ] १ ग्राम का वृक्ष एवं फल । २ पुत्री की विदाई पर गाया जाने वाला लोक गीत । श्रमं देखो 'मिस'
ग्रांम पु० [सं० थान, ग्राम) १ एक सुप्रसिद्ध रसीना एवं स्वादिष्ट फल व इसका वक्ष । २ श्रामाशय का रोग । ३ अपचकृत मल, आंव । ४ रोग । [ ग्र० ग्राम ] ५ जन साधारण । ६ साधारण खानौ पु० दरबार ग्राम, राज सभा । खास-पु० राज महल का भीतरी प्रकोष्ठ वह राज सभा जिसमें सब जा सके। गोम पु० असमंजस । -- जीररण- पु० अजीर्ण रोग | -रख रस- पु० ग्राम का रसरसती, रासौ पु० राजपथ, सार्वजनिक मार्ग । --वात- पु० रोग विशेष । —सूल - पु० रोग विशेष । प्रमक (देवयामित' ) । ग्रांमटी-स्त्री० भय, ग्रातंक, डर । ग्रांमी (बी) कि० मटना, नष्ट होना ।
श्रमर-मर ( दूम लौ) - वि० (स्त्री० ग्रामरण दुमली) खिन्न, उदास, विक्षिप्त ।
For Private And Personal Use Only
प्रांमरणा मरणा स्त्री० उदासीनता । ग्रांमखा ( प ) - देखो 'घांमना'। (घ)
श्रमदां (दनी, दांनी ) - स्त्री० [फा० ग्रामद] १ ग्रामदनी, ग्राय ।
२ प्रावागमन |
श्रमदरफत पु० [फा० ग्रामदरफ्त ] ग्रावागमन, प्राना-जाना । ग्रांमना (य) स्त्री० [सं० आम्नाय ] १ इच्छा कामना ।
२ प्ररण, प्रतिज्ञा । ३ अभ्यास । ४ पुण्य । ५ वेद, श्रुति । ६ ब्राह्मण, उपनिषद् तथा प्रारण्यक संहिता । ७ परम्परा प्राप्त प्रचलन फूल या राष्ट्रीय प्रथाएं परामर्ग या शिक्षण ।
आमने-सामने कि०वि० एक दूसरे के सामने प्रत्यक्षा मुखातिव
मन० १२३ ।
"