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कहाणी
(
२१५ )
कांचरणो
कहाणी (नी)-स्त्री० [सं० कथानिका] १ कोई किस्सा, | कांकड़ेल-बि०१ सरहद पर रहने वाला । २ योद्धा, वीर ।
आख्यायिका । २ कथा, वार्ता । ३ गल्प, मन गढंत बात । कांकरण-पु०सं० कंकण] १ कंगन, कंकरण । २ विवाह के समय ४ काल्पनिक कथा।
वर-वधू के हाथ-पावों में बांधे जाने वाले मांगलिक सूत्र । कहारेक (रेके)-क्रि० वि० १ कभी । २ कभी न कभी।
३ युद्ध । ---डोर, डोरड़ी, डोरणौ-पु० विवाह संबंधी कहार (क)-पु० १ पानी भरने व पालकी उठाने का व्यवसाय मांगलिक सुत्र । -छोड़, छोड़णी-पु. एक वैवाहिक रश्म ।
करने वाली जाति । २ उक्त जाति का व्यक्ति। ३ बोझा | कांकरणस. कांकरिणयौ-पू० स्त्रियों की चोटी में गुथी जाने वाली उठाने वाला।
___ऊन की डोरी। कहाव, कहावत (ति, ती)-स्त्री० १ लोकोक्ति, उक्ति । २ संदेश कांकरणी-स्त्री० हाथ की कलाई का प्राभूषण । कंगन ।
खबर । ३ वचन, शब्द, कथन । ४ अपयश, कलंक। कांकर-स्त्री० [सं० कर्कर] १ छोटे-छोटे कंकरों का समूह जो ५ प्रचलित बात।
इमारत की छत, प्रांगन आदि में काम आता है । २ छोटा कहि-सर्व० १ किस । २ कोई।
कंकड़ । ३ कंकरीली भूमि । ४ एक झाड़ीनुमा पौधा जिसके कहिके (क)-सर्व किसी।
फल मीठे होते हैं। -क्रि० वि० कैसे, किस तरह । कहिणी-स्त्री० कथनी।
कांकरड़ी, कांकरी-देखो 'कांकर' । देखो 'कांकरण' । कहिम-प्रव्य० चाहे।
| कांकरौ-देखो 'कंकड़े। कहियो-पु० कहना, प्राज्ञा, प्रादेश ।
कांकळ-पु० [सं० किंकल] १ युद्ध । २ सरहद । ३ देखो 'कांकड। कहिर-पु० [सं० कंधरा] १ गर्दन । २ कंधा । ३ देखो 'कहर'। कांकी, कांक-सर्व० किसकी, किसके । कही-सर्व० १ कोई । २ किसी।
कांख-स्त्री० [सं० कक्षः] १ बगल, कांख । २ पार्श्व । कही-क्रि० वि० कहां ।
कांगड़ारीराय-स्त्री० ज्वालामुखी देवी। कहीक-सर्व०किसी।
कांगड़ी-पु. १ पश्चिमी हिमालय का एक प्रदेश । २ मटमले कहीका-क्रि० वि० कहीं।
रंग का एक पक्षी। कही-अव्य० किमी।
कांगरणी-स्त्री० १ माल कांगरणी । २ एक प्रकार का कदन्न । कहीय-क्रि० वि० कभी।
कांगणी-देखो 'कांकरण'। कहीयौ-पु० कथन, कहना, प्राज्ञा, प्रादेश ।
कांगरि-देखो 'कांगरौ। कहुं (हूँ)-क्रि० वि० कहीं-कहीं। कहीं पर ।
कांगरु (देस)-देखो 'कामरूप' । कहुकरणौ (बौ), कहकरणौ (बौ)-क्रि० १ कोयल का बोलना।
कांगरौ-पृ० [फा० कंगूर १ बुज। २ कंगुरा । २ पक्षियों का कूजन करना। ३ ऊंट का बोलना। कहूको-देखो 'कुहुक'।
कांगळ-देखो 'कागज' । कहूर-पु० मोठ, ग्वार ग्रादि के फल ।
कांगसियो-पु. १ कंघा । २ एक राजस्थानी लोकगीत । कहेण-पु० [सं० कथन] कथन ।
कांगसी-स्त्री० [सं० कंकती स्त्रियों के केश संवारने की कंघी । का-ग्रव्य. १ का, के ग्रादि संयोजक अव्यय । २ क्या, कैसे। कांगाई-स्त्री०१दरिद्रता, कंगाली । २ याचकना । ३ नीचता। -सर्व० ३ क्यों, किसलिए ।
४ बुरा स्वभाव । ५ झगड़ा । काइ (क)-सर्व० [सं० किम्] क्या। -क्रि० वि० क्यों, कैसे ।
| कांगारोळी, कांगीरोळी-पु०१ झगड़ा, फिसाद । २ तू-तू-मैं-मैं । -वि० कुछ, कुछेक, तनिक ।
३ कलह । काहरणी-स्त्री. प्लेग की गांठ ।
कांगी-देखो 'कांगसी'। कांडणी-पू०१ संधिस्थलों पर पड़ने वाली मोच । २ तराजू | कांगरी-देखो 'कांगरौ'। ___ या पतंग का कोना।
कांगो-वि० (स्त्री० कांगी) १ कंगाल, निर्धन । २ याचक । काई (क)-देखो 'काइक'।
३ बुरे स्वभाववाला। कांऊ-स्त्री० कौवे के बोलने का शब्द, कौवे की पावाज। कांच-स्त्री० [सं० कक्ष) १ देन्द्रिय का भीतरी भाग । २ देखो कांक-१ देखो 'कंक' । २ देखो 'कांख'।
। 'काच । कांकड़-पु० [सं० कंकट] १ जंगल, वन । २ कृषि भूमि, खेत कांचरणौ (बी)-क्रि० अधिक कब्जियत की दशा में शौच जाने के __ प्रादि । : मीमा, सरहद । ४ क्षेत्रफल ।
लिये जोर लगाना, कामना ।
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