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नीनरेख
(
५८५ )
तीरी
तीनरेख-पृ• शंख ।
तीरत-देखो 'तीरथ'। तीना-कि. वि. में ।
तीरथंकर-पु० [सं० तीर्थंकर जैनियों के उपास्यदेव जो २४ तीना-देखो तीन'।
माने गये हैं। तीने' के वि० तीन के करीब, तीन के लगभग ।
तीरथ-पु० [सं० तीर्थ] १ वह पवित्र स्थान जहां श्रद्धालु जन तीन्ही-पु. एक प्रकार का घोड़ा विशेष ।
यात्रा, स्नान, पूजा आदि के लिये जाते हैं । २ धार्मिक व तीब-स्त्री. १ टूटी वस्तु के लगाया गया जोड़ । २ ऐसे जोड़ पूण्य क्षेत्र। ३ हाथ के कुछ विशिष्ट स्थान । ४ शास्त्र ।
पर लगाया जाने वाला धातु का छोटा तार । ३ छोटा ५ दशनामी संन्यासियों की एक शाखा । ६ माता-पिता । टांका । ४ लोहे, पीतल आदि की बारीक कील, पिन । ७ ब्राह्मण । ८ अतिथि, मेहमान । ६ साधु-साध्वी । ५ दांतों पर लगाई जाने वाली स्वर्ण मेख ।
१० तर्थ कर का शासन । ११ जिन तीर्थकर का नाम । तीबगट्टी-स्त्री० सुहागिन स्त्रियों का एक शिरोभूषण । १२ यज्ञ-क्षेत्र। १३ रोग का निदान । १४ घाट । तीबरणी (बी)-क्रि० १ नुकीले औजार से बारीक छेद करना । | १५ घाट की सीढ़ी। १६ गुरु, उपाध्याय । १७ दर्शन,
२ किसी वस्तु के तार का जोड़ लगाना । ३ वस्त्र आगम । १८ अग्नि । १६ स्त्री का रज । २० योनि । में टांका लगाना।
२१ उद्गम स्थान । २२ माध्यम। २३ उपाय । तीबारौ-देखो 'तिबारौ' ।
२४ सचिव, पुरोहित । २५ उपदेश निर्देश । २६ उपयुक्त तोमरण-देखो 'तींवरण'।
स्थान या काल । २७ रास्ता, मार्ग । २८ जल स्थान । तीमरिणयौ-देखो 'तिमरिणयो' ।
२९ थेष्ठ पुरुष । ३० पुण्यात्मा । -जात्रा-स्त्री० तीमारदारी-स्त्री० [फा०] सेवा-शुश्रूषा, चाकरी ।
तीर्थयात्रा। -देव-पु. शिव, महादेव । जिन, तीर्थकर । तोय-पु० श्रेतायुग। (जैन)
---नायक-पु. तीर्थाधीश, तीर्थ कर । --पति-पु. तीरथ तीय-देखो "तिय । २ देखो 'तीत' ।
राज । -पाद-पु० श्रीविष्णु । -यात्रा-स्त्री० पवित्र तीयल-देखो 'तील'।
स्थानों की यात्रा, तीर्थाटन। -राई, राज, राजी, राव-पु० तीयां-सर्व० उन।
तीर्थों का राजा प्रयाग, काशी। तोयाग- देखो 'त्याग'।
तीरथाटण (टन)-पु० [स० तीर्थाटन] पवित्र स्थानों की यात्रा, तीयार-देखो तैयार'।
तीर्थयात्रा। तोये (य)-सर्व० उस, वह । -वि० तीसरा, तृतीय । तीरथीयो-पु०१तीर्थों का निवासी । २ तीर्थों पर भेंट लेने वाला। तोयौ--पु० [सं० त्रि] १ तीन का अंक । २ तीन बूटी का ताश तीरयु, तीरथ्य-देखो तीरथ' ।
का पत्ता ३ मृतक का तीसरा दिन व इस दिन को किया तौरबार-पु० तीर चलाने के लिये बने, दीवार के छेद । जाने वाला संस्कार।
तीरभुक्ती-स्त्री० [सं०] गंगा, गंडक और कौशिकी नदियों से तीरंदाज-वि० [फा०] तीर चलाने में निपुण, दक्ष ।
घिरा प्रदेश। तीरंदाजी-स्त्री० [फा०] तीर चलाने की कला ।
तीरमदाज-देखो 'तीर दाज' । तौर-पू मं०] १ नदी या जलाशय का तट, किनारा । २ छोर
तीरवरती-वि० [सं०तीरवर्ती] १ तटवर्ती, किनारे या समीप
रहने वाला । २ पड़ोसी। किनारा, हाशिया । ३ बागा, शर । ४ बाण जैसा चिह्न।।
तीरां-क्रि० वि० पास, निकट, नजदीक । ५ सीसा। ६ जस्ता, टान । ७ बन्दूक की नाल का छेद ।।
तीरांण-स्त्री० तैरने की क्रिया या ढंग। ७ जहाज का मस्तूल । ५ रहट से चक्र के बीच खड़े रहने
तीराई-स्त्री० तीर चलाने की क्रिया । वाले लट्ठ के नीचे का नुकीला भाग । -क्रि० वि० पास
तीराव-स्त्री० तिपाई। निकट, ममीप ।
तीरी-पु. तट, किनारा। -कि० वि० पास, समीप । तोरई-देखो 'तीरे'।
तोरीया-स्त्री० १ रहट में लगी एक लकड़ी विशेष । २ देखो तीरकस-पु० १ द्वार पर बना धनुषाकार प्रालय । २ दीवार 'तिरिया'। ___ में बने तीर चलाने के छेद ।
तीरीयौ-वि० १ तीर चलाने वाला । २ तीर पर या तीर के तोरकारी-स्त्री० तीर चलाने की क्रिया।
पास रहने वाला। ३ देखो 'तीर'। तीरगर-पु० [फा०] तीर बनाने का व्यवसाय करने वाली तीरें, तीरे, तीरें, तोर-क्रि० वि० निकट, पास, समीप । जाति ।
तीरौ-देखो 'तीर'।
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