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दरबारी
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६३५ )
दरिद
-प्राम-पु० ग्राम सभा । -खास-पु० विशिष्ट सभा । ४ प्रांख । ५ पर्यवेक्षण, सर्वेक्षण । ५ रूप, वर्ण, प्राकार । --दारी-स्त्री० दरबार में उपस्थिति । खुशामद, जी ७ समझ, परख, बुद्धि । ८ आईना, दर्पण। ९ धर्म या हजूरी।
किसी विषय का तात्त्विक विवेचन, सिद्धान्त । १० नाथ दरबारी-पु० [फा०] १ राज सभा का सभासद । २ द्वारपाल, सम्प्रदाय के साधुओं के कानों के कुण्डल । ११ राजस्थान
छड़ीदार । ३ एक राग विशेष । -वि० दरबार का, दरबार की छः जातियों का समूह । १२.७२ कलाओं में से एक । संबंधी। -कान्हड़ी-पु० एक राग विशेष ।
दरसरणी, दरसणीक, दरसरणीय-वि० [सं० दर्शनीय] १ सुन्दर, दरबौ-पु० १ कबूतर या मुर्गी पालने की संदूक । कोष्ठक । |
मनोहर । २ देखने योग्य, दर्शन लायक । ३ मिलने, भेंट २ काल कोठरी । ३ भूत-प्रेतों का निवास स्थान ।
करने योग्य । --पु० 'खट दरसरण' के अन्तर्गत आने दरम्ब-देखो 'द्रव्य'।
वाला व्यक्ति । दरब्बार-देखो 'दरबार'।
दरसरणी-हुडी-स्त्री० एक प्रकार की हुंडी। दरम-पु० [सं० दर्भ] कुश, डाभ नामक घास ।
दरसरणी (बी)-क्रि० [सं. दर्शन] १ दिखाई पड़ना, दिखना । दरमजल-देखो 'दरकूच'।
२ महसूस होना, प्रतीत होना, अनुभव होना । दरमाहौ-पु० [फा० दरमाहा] मासिक वेतन ।
३ संभावना हाना। दरम्यान-पु० [फा० दरमियान] मध्य, बीच। -क्रि०वि०मध्य | दरसन-देखो 'दरसण' । में, बीच में, दौरान ।
दरसनी, दरसनीक, दरसनीय-देखो 'दरसणीय' । दरम्यांनी-वि० [फा० दरमियानी] बीच का, मध्यवाला । बीच
दरसारणी (बी), दरसालणौ (बौ)-कि० [सं० दर्शन] १ दिखाना, में पड़ने वाला । -पु० मध्यस्थता करने वाला व्यक्ति । दृष्टि गोचर करना, बताना । २ दिखाई देना । ३ नजर दरयाई-स्त्री० [फा०दाराई] साटन नामक रेशमी वस्त्र । -वि०
आना । ४ मालूम पड़ना । ५ प्रगट होना । ६ अनुभव [फा० दरियाई] समुद्र संबंधी, समुद्र का। -पु० एक प्रकार
होना । ७ स्पष्ट करना, समझाना । का घोड़ा।
दरसाव-पु० [सं० दृश] १ दृश्य, नजारा, २ दिखने की क्रिया दरयाव-देखो 'दरियाव'।
या भाव, प्रगटन । दररो-पु० [फा० दरः] १ पहाड़ों के बीच का संकरा मार्ग।
दरसावणी (बौ)-देखो 'दरसारणो' (बौ)। २ दरार । -वि० [सं०दरण] दरदरा, कणों या रवों वाला
दरस्स-देखो 'दरस'। दरव-पु० [सं० दर्व:] १ हिस्रजन। २ उपद्रवी या उत्पाती दरस्सरण-देखो 'दरसरण'।
व्यक्ति । ३ राक्षस, दैत्य । ४ कलछी। ५ देखो 'द्रव्य' । दरहरणी (बौ)-क्रि० हवा का चलना। दरवरता-स्त्री० [सं० द्रवता] द्रवत्व, तरलता।
दरहाल-क्रि० वि० पल-पल, प्रतिक्षण । हर वक्त । बार-बार । दरवांण (न)-पु० [फा० दरबान] १ द्वारपाल । २ राजदूत ।। दरांती-स्त्री० [सं० दात्र] दांतेदार एक उपकरण विशेष । ३ छड़ीदार ।
दराड़-देखो 'दरार'। वरवानी-स्त्री० द्वारपाल का कार्य । दरवाजो-पु० [फा० दरवाजा] १ द्वार, दरवाजा ।
दराज-वि० [फा०] (स्त्री० दराजी) १ बड़ा, महान । २ दीर्घ, २ कपाट, किवाड़।
चिर । ३ अच्छा बढिया। ४ अधिक, बहुत । -स्त्री० मेज के दरवायो-पु० हल का एक उपकरण ।
- नीचे का खन, ड्राअर । दरवी-स्त्री० [स० दर्वी] १ कलछी, चमचा । २ सांप का फन ।। दराणौ (बौ)-देखो 'दिराणी' (बी)। दरवीकर-पु० [सं० दर्वीकर] १ फन वाला सर्प । २ सांप।
दरार (रो)-स्त्री० [सं० दर] १ किसी चीज के फटने की जगह, दरवेस-पु० [फा० दरवेश] १ फकीर । २ साधु, महात्मा ।
फटाव, शिगाफ । २ छिद्र, छेद । ३ बादशाह । ४ मुसलमान । ५ भिखारी, भिक्षुक ।
दरावरणौ (बी)-देखो 'दिराणी' (बी)। दरस-पु० [सं० दर्श] १ दर्शन, दीदार। २ दृश्य, तमाशा। दरि-पु. १ दरबार, राज-सभा। २ दरवाजा । ३ दग्यिाव, ३ यज्ञ विशेष । ४ अमावस्या की तिथि । ५ छवि, रूप,
सागर। सुन्दरता ।
दरिमाउ, दरियाव-देखो 'दरियाव' । दरसण-पु० [सं० दर्शन] १ साक्षात्कार, भेंट, मुलाकात। दरिद, दरिद्र-वि० [सं० दरिद्र] १ निर्धन, कंगाल, गरीब ।
२ देखना क्रिया, चाक्षुक ज्ञान । ३ अवलोकन । मुग्रायना । २ भिखारी। -स्त्री० [सं० दारिद्य] निर्धनता, कंगाली।
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