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जरामर
जळकरणी
जरासंद, (घ) जरासिंध, जरासिंधु(धि,धो)-पु० [सं० जरासंध] | इन्द्र । -प्रासय-पु. जलकुण्ड, सरोवर । -प्रोक-पु०
मगध देश का राजा (महाभारत)।-खय-पु० भीम । जलकीट विशेष । -कंत-पु० मरिण विशेष । दक्षिण दिशा जरासुत (सेन)--पु. जरासंध का एक नाम ।
का इन्द्र । इन्द्र का एक लोकपाल । -कतार, कांत,कांतार-- जरि, जरिन वि० [सं० जरिन्, ज्वरिन्] १ जरायुक्त, वृद्ध, पु० वरुण। -काक, काग-पु० जल में रहने वाला कोना। अतिवृद्ध ।२ बुखार से पीड़ित ।
-कार, कारी-पु. मेघ, बादल । चारइन्द्रिय एक जीव जरिउ-वि० [सं० जीर्ण] पुराना ।
जाति । -किट्ट-पु० जल का मैल, काई। -किड़ा, कीड़ा, जरियौ-पु० [सं० जरिया] १ चम्मचनुमा छोटो चलनी ।। कोला-स्त्री०श्रीकृष्ण, जलक्रीड़ा। -कुमी-स्त्री०जलाशयों
२ लगाव, संबंध । ३ साधन । ४ सहारा। ५ संबंध के पानी पर फैली रहने वाली वनस्पति । -कूडियो, कूडौ स्थापित करने का तत्त्व, माध्यम ।
-पु० चन्द्रमा के चारों ओर दिखाई देने वाला वृत्त। -केतु जरौंद, जरीदौ-देखो 'जरंद'।
-पु० पश्चिम में उदय होने वाला पुच्छलतारा ।-कोमा जरी-स्त्री० [फा०] १ वस्त्रों में लगने वाले सोने, चांदी प्रादि 'जळकाग'। -क्रीड़-पु० ईश्वर, श्रीकृष्ण । -क्रीड़ा-स्त्री०
के चमकीले तार । २ उक्त प्रकार के तारों से युक्त वस्त्र ।। जल विहार । -खांनौ-पु० पीने का पानी रखने का कक्ष । जरीको-पु० १ चोट, प्रहार, प्राघात । २ टक्कर ।
-- खार-पु० समुद्र । -ख्यात-पु० नाविक, केवट । -गंग जरीब-पु० [फा०] १ भूमि का एक माप विशेष । २ उक्त | -पु० गंगा नदी । -गार-पु० जलाशय, सरोवर । -गौ
माप का उपकरण । -कस-पू० उक्त उपकरण को खींचने पु० अग्नि । -प्रभ-पु० मेघ, बादल । -घड़ियोवाला व्यक्ति।
पु० विष्णु पूजन में जल लाने वाला व्यक्ति । -घड़ीजरीबांनो (मांनो, वांनौ)-देखो 'जुरमानौ' ।
स्त्री० कटोरीनुमा एक पात्र जिसमें छेद होता है जरु (रू)-पु० १ काबू, वश । २ इख्तियार. अधिकार ।। पौर जिसे जल में छोड़ कर समय ज्ञात किया जाता है ।
३ प्रत्यधिक शीत । -वि० १ वश में, काबू में । २ मजबूर, -चर-पु. जलजंतु । -चरी-स्त्री० मछली। -चारण विवश । ३ मजबूत, दृढ़ । ४ जबरदस्त, प्रबल ।
-वि० पानी पर चलने वाला । -चारी='जलचर' । ५ देखो 'जरूर'।
--छत्र-पु० कमल । -जंत्र-पु० फव्वारा। -जांन-पु० जरूर क्रि० वि० [अ०] १ अवश्य, निस्संदेह । २ जब ।
जलयान, जहाज । --जनम, जात-पु. कमल, जौंक । जरूरत-स्त्री० [अ०] प्रावश्यकता, प्रयोजन ।
-~-जाळ-पु० मेघमाला, धनघटा । -जीव, जीवि-पु. जरूरी-वि० [फा०] १ प्रावश्यक, अनिवार्य । २ खास, विशेष ।।
पानी में रहने वाले जीव । -जेता-पु० वरुण । -जैतअरूला-स्त्री० [सं० जरुला] चार इन्द्रियधारी जीवों की एक
स्त्री० कान्ति, शोभा, यश, कीति । --जोग-पु० वर्षा का जाति । (जैन)
योग । -मूलणी-स्त्री० भादव शुक्ला एकादशी। -ठाण जरे (रे)-क्रि० वि० जब, तब ।
-पु० जलाशय, पानी रखने का स्थान । -दाग-पु० शव को
नदी में बहा देने की क्रिया । --दुरग-पु. चारों ओर पानी जरोवरणीय-पु० [सं० जरोपनीत] वृद्ध पुरुप । (जैन)
से सुरक्षित दुर्ग। -देव, देवता-पु० वरुणदेव, पूर्वाषाढ़ा जरी-J• १ भय, अातंक, डर । २ देखो 'जर'।
नक्षत्र । ---द्रव्य-पु० मुक्ता, शंख प्रादि द्रव्य । --धारीअळंबर (घर)--पृ० [सं० जलंधर, जलोदर] १ नाथ सम्प्रदाय पु० मेघ, इन्द्र, जल पिलाने वाला। --पक्खंद, पक्खवरण
का एक सिद्ध । २ एक राक्षस । ३ जालौर नगर । ४ एक -पु० पानी में डूबने की क्रिया । (जैन) ---पत, पति उदर रोग विशेष ।
(ती)-पु० वरुण, समुद्र । -पथ-पु० नाली, नहर, समुद्री जळधरी (रौ)-पु० १ एक वृक्ष । २ देखो 'जलंधर' । मार्ग। -प्रिय-स्त्री० मछली, चातक । --बाळा, बाळि-पाव=देखो 'जलंधरनाथ'।
स्त्री० विद्य त, बिजली। -मंड, मंडण, मंडळ-पु० बादल; जळनिद्ध (निध)-देखो 'जळनिधि'।
मेघ । -मंडूक-पु० एक प्रकार का बाजा -मारग-पु० जळंबळ -स्त्री० नदी।
यात्रा का समुद्री मार्ग । -माळ, माळयिण, माळा-स्त्री० जळ-पु. [सं० जल, ज्वल | १ पानी, नीर । २ शीतलता । नदी, सरिता । ----मुक, मुच-पु० मेघ, बादल। -रमण
३ पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र । ४ एक सुगंध द्रव्य । ५ किसी पदार्थ (रिण, णी)-स्त्री० बिजली, विद्युत, जलक्रीड़ा। -रांण, का पतला रम । ६ जन्म कुंडली में चौथा स्थान । राइ, राट-पृ० समुद्र । -हट, रुत-पु० कमल । ----लता ७ कोप, गुस्सा। आभा काति, दीप्ति । ६ वीरत्व,
-स्त्री० लहर । ---विभू-पु० बरुण । वीरना। --बि० १ सुस्त । २ शीतल, ठंडा । -प्राधीन-पु० जळकरणों (बौ), जळक्करणी (बो)-देखो 'झळकणी' (बी)।
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