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चड़ाक
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३७८ )
चतुरघ
बढ़ाक-वि० चढ़ने वाला, चढ़ने में दक्ष । सवारी करने में | चणायकां-स्त्री. १ चाणक्य नीति के श्लोक । २ इन श्लोकों ___ निपुण।
की पुस्तक। चढ़ाचढ़ी-स्त्री० प्रतिस्पर्धा । प्रतियोगिता।
| चणारी-स्त्री० १ एक प्रकार का काला जंतु । २ पैर के तलवे बढ़ाणी (बो), चढ़ावणी (बी)-क्रि० १ नीचे से ऊपर जाने के में होने वाला मोटा फफोला।
लिये प्रेरित करना, ऊपर चढ़ाना। २ ऊपर उठाना। चरणौ-पु० [सं० चरणक] १ रबी की फसल में होने वाला ३ बढ़ाना, विकसित करना। ४ उन्नत करना, तरक्की प्रसिद्ध द्विदल अन्न । २ इस अन्न का पौधा । देना। ५ आगे बढ़ाना। ६ सिकोड़ना, समेटना, ऊपर | चत-देखो 'चित' । करना। ७ उड़ाना । ८ आवेष्टित या प्रावरण युक्त | चतड़ाचौथ-स्त्री० भादव शुक्ला चतुर्थी, गणेश चतुर्थी । करना । १ आक्रमण के लिये तैयार करना, उद्यत करना।। चतमाठो-देखो 'चितमठौ'। १० सवारी कराना। ११ भावों में तेजी लाना, बढ़ाना। चतरंग-स्त्री० १ चतुरंगिनी सेना । २ शतरंज । ३ चित्तौड़गढ़ । ११ वृद्धि करना । १३ किसी की शरण में जाने के लिये -वि०१ चतुर, निपुण, दक्ष । २ चालाक । प्रेरित करना । १४ रवाना करना। १५ वाद्यों को तनाव चतरगंणी-देखो 'चतुरंगिनी'। देकर स्वर युक्त करना। १६ नैवेद्य आदि भेंट करना, | चतर-देखो 'चतुर'। -भुज-'चतुरभुज'। समर्पित करना । १७ अंकित करना, लिखना। १८ अवधि चतरणौ (बौ)-क्रि० १ चित्रकारी करना। २ चित्रण करना। से अधिक समय होने देना । १९ देय या बाकी निकालना। चतरांम-देखो 'चित्रांम'। २० ऋण बढ़ाना। २१ अावेश या जोश दिलाना। चतराई-देखो 'चतुराई। २२ पकने के लिये प्रांच पर रखना। २३ रोगन आदि का चतारण-पु० [सं० चतुरानन] ब्रह्मा । लेपन करना। २४ पसंद कराना, ध्यान में लाना। चतारो-देखो "चितारौ'। २५ प्रयाण कराना। २६ लदवाना, चढ़वाना । २७ पीना, | चतुरंग-पु० [सं०] १ सेना के चार अंग, रथ, हाथी, घोड़े और पी जाना। २८ वधू के लिये जेवर भेजना । २९ धनुष पैदल । २ सेना, फौज । की प्रत्यंचा कसना।
चतुरंगण (णि, पो)-देखो 'चतुरंगिनी' । चढ़ापो (वौ)-पु० देव मन्दिर में चढ़ाया जाने वाला नैवेद्य, फल- चतुरंग पत (पति)-पु. चतुरंगिनी सेना का स्वामी, सेनापति फुल, द्रव्य आदि।
या राजा। बढ़ीरो-पु० १ सवारी के लिये तैयार ऊंट या घोड़ा। चतुरंगिणी (नी), चतुरंगी-स्त्री० रथ, हाथी, घोड़े व पैदल २ चारजामा।
चारों अंगों से पूर्ण सेना । -वि०१ दक्ष, निपुण । २ चार चण चरणउ, चरणक-स्त्री० १ शरीर में पड़ने वाली मोच, अंगों वाली।
लचक । २ एक ऋषि का नाम । ३ देखो 'चरणों'। चतुरंत-वि० [सं० चतुर्थ] चौथा, चतुर्थ । बरणकार-पु०१चने का खेत । २ चने की बोवाई के लिये चतुर-वि० [सं०] १ निपुण, दक्ष, पटु। २ तीक्ष्ण बुद्धि तैयार की गई भूमि । ३ ध्वनि विशेष ।
सम्पन्न । ३ फुर्तीला, तेज। ४ चलता पुर्जा, होशियार। चरणग-पु० १ चिनगारी । २ अग्निकण । ३ देखो ‘चणक'।। ५ भनोहर, सुन्दर, प्रिय। ६ अनुकूल। ७ धूर्त, चालाक । चरणणंक-स्त्री०१ रोमांचित होने का भाव। २ छन-छन की -पु० [सं० चत्वार] १ ब्रह्मा। २ चार की संख्या । प्रावाज।
३ कवि। ४ श्रृंगार रस का संभोग-चतुर नायक । पणणंकणी (बो)-क्रि० जोश या भय से रोमांचित होना। ५ कपट । चरण-स्त्री० १ रोमांचित होने का भाव । २ छन-छन की
चतुरक-पु० चतुर व्यक्ति या नायक । पावाज । ३ तीर व गोलियों की बौछार की ध्वनि ।
चतुरगति-पु. कच्छप, कछुवा । चरणबाट (टियो, टो)-पु. १ विनाश, विध्वंस । २ बरबादी।
चतुरजातक-पु० इलायची, दालचीनी, तेजपत्र व नागकेसर । ३ ध्वनि विशेष । ४ झन्नाटा।
का मिश्रण। चरणरणारणी (बो)-क्रि० १ रोमांचित होना । २ झन्नाटा पाना । ३ चिनचिनाना।
चतुरजुग-पु० चार युग। अपणो (बी)-देखो 'चुरगणो (बी)'।
चतुरजोणि (जोगी)-पु० [सं० चतुर्यो नि] प्राणियों की चार चसाई-१ देखो ‘चणारी' । २ चुणाई।
योनि, अंडज, जरायुज, स्वेदज, उभिज । परणाखार-पृ० चने के पौधे का सार ।
| चतुरथ-वि० [सं० चतर्थ] चौथा ।
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