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पाण्डुलिपि-ग्रन्थ-रचना-प्रक्रिया/29
8.
6. लिपिकार ने अमुक के लिए अमुक की भेंट के लिए/अमुक के पाठ के लिए अमुक के
पढ़ने के लिए/अमुक के संग्रह के लिए अमुक को सुनाने के लिए लिखी। 7. लिपिकार ने स्व-पठनार्थ पाठ के लिए संग्रह के लिए लिखी।
लिपिकार ने अमुक प्रति के बदले लिखी। (मूल प्रति नष्ट प्रायः हो रही थी, उसके पाठ को सुरक्षित रखने के लिए) "अमुक""रै बदल माँ लिखी," या
"अमुक..."रै बदलायत लिखी," लिखा मिलता है । 9. ऐसे भी अनेक लिपिकार रहे हैं जिन्होंने प्रचारार्थ / बिक्री के लिए धर्म भावना
से परिवार और मित्रों में भेंट देने के लिए प्रतियाँ लिखीं हैं । दो के नाम ये हैं
साहबरामजी तथा प्रारणसुख (नगीने वाला) । 10. कई ऐसे भी लिपिकार हैं, जो एक समय एक के शिष्य हैं, बाद की लिखी प्रति में
दूसरे के और तीसरी में तीसरे के शिष्य । ध्यानदास, साहबराम, परमानन्द के नाम लिये जा सकते हैं । इस सम्बन्ध में ज्ञातव्य है कि :
(अ) इससे यह न समझना चाहिये कि लिपिकार गुरु बदलता रहा है । अधिकांशतः वह नहीं ही बदलता है । गुरु से यह तात्पर्य है
(क) पिता (जो गृहस्थ त्याग कर संन्यासी हो गये) (ख) विद्या पढ़ाने वाला गुरु (ग) दीक्षा देने वाला गुरु (घ) अध्यात्म-पथ-निर्देशक गुरु, एवं (ङ) सम्प्रदाय-विशेष के प्रवर्तक गुरु ।
चार-चार [प्रथम चार (क) से (घ) तक] गुरुओं के नाम अनेक प्रतियों में (एक ही प्रति में भी) मिलते हैं । धर्म के क्षेत्र में गुरु भी बदल जाते हैं, किन्तु बहुत कम ।
(ब) राजस्थान में एक और विचित्र बात गुरु के सम्बन्ध में है। स्वर्गस्थ गुरु के 'खोले' (गोद) भी किसी वर्तमान गुरु का शिष्य चला जाता है । खोले वह तब जाता है जबकि स्वर्गस्थ गुरु का प्रारम्भ किया हुआ कार्य उनकी मृत्यु के कारण अधूरा रह गया हो अथवा वर्तमान गुरु के निर्देश से मृतक गुरु की आकांक्षा-विशेष की पूर्ति के निमित्त भी चला जाता है । ऐसी स्थिति में एक ही प्रति में रचना-विशेष की समाप्ति पर एक जगह एक गुरु का नाम और दूसरी जगह स्वर्गस्थ गुरु का नाम लिखा मिलता है।
किसी भी प्रति के पाठ को ग्रहण करते समय अथवा पाठ-सम्पादन के लिए चुनने के समय उल्लिखित प्रकार से उद्देश्य जानना आवश्यक है। तभी उसकी तुलनात्मक विश्वसनीयता का पता लग सकेगा।
इससे (उद्देश्य से) यह कैसे पता चलता है कि पाठ-सम्बन्धी कैसी और कौनकौनसी मूले सम्भव हैं :नोट : 'सम्भावना' की जा सकती है। निश्चित रूप से तो पाठ-सम्पादन के समय
आई विकृतियों आदि के आधार पर ही कहा जा सकता है । सतर्कता के लिए कुछ आवश्यक बिन्दु प्रस्तुत किए जा रहे हैं : .
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