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पांडुलिपि-प्राप्ति और तत्सम्बन्धित प्रयत्न : क्षेत्रीय अनुसंधान/79
(च) पंक्ति-प्रति पृष्ठ 10 पंक्तियाँ हैं । (छ) अक्षर-प्रति पंक्ति 26-30 तक अक्षर हैं । (ज) लिपि-पाठ्य है, किन्तु बीच में कई पन्नों के आपस में चिपक जाने से कहीं-कहीं
अपाठ्य है। (झ) श्री साहबरामजी द्वारा। (ञ) यह प्रति सं० 1935 में लिपिबद्ध की गयी। (ट) प्राप्ति स्थान-लोहावट साथरी है। (ठ) आदि का अंश-"श्री विष्णु जी श्री रामचन्द्र जी नम" (ड) अथ श्री प्रदमईया कृत (ढ) रुकमणी मंगल लिषतं : (ण) दोहा - "संसार सागर अथाग जल ॥ सूझत बार न पार ॥
गुर गोबिन्द कृपा करो ।। गाँवाँ मंगल चार ॥१॥" (त) अन्त का अंश-जो मंगल कू सुन गाय गुन है बाजे अधिक बजाय
पूरण ब्रिह्य पदम के स्वामी मुक्त भक्त फल पाय ।।5।।192 (थ) ईती श्री पदमईया कृत रुकमणी मंगल सम्पूर्ण (थ) 1-सम्वत् 1935 रा वृष मीती भाद्रवाद 4 वार आदितवारे लीपीकृतं (थ) 2-शाध श्री 108 श्री महंतजी श्री प्रातमारामजी का सिष शायवरांमेग (थ) 3-गाँव फीटकासणी मेधे (थ) 3-1 विष्णुजी के मीदर में (थ) 4-जीसी प्रती देषी (प्रति) तसी लिषी मम दोस न दीजीये-- . (थ) 4-1 हाथ पाव कर कुबडी मुष अरु नीचे नैन । ईन कष्टा पोथी लीषी तुम नीके
- राषीयो सेन । (द) सुभमस्तु कल्याणमस्तु विष्णुजी । (भिन्न हस्तलिपि में) (ध) 1-प्रती व्यावलो श्रीकिसन रुकमणी रो मंगलाचार री पोथी साद गोंविददास
विष्णु बैईरागी की कोई उजर करण पावैन्ही ॥ साद रूपराम विसनोइयाँ रा
कनां सु लीनो छ गाँव रामड़ावास रा छै ।। ...इसमें
(क) में कृतिकार का नाम दिया गया है । : (ख) में यह सूचना है कि राग-रागिनी में छन्द संख्या अलग-अलग है। (यह अन्तरंग
पक्ष है) . (ग), 'कागज' विषयक सूचना (प्राकार एवं स्वरूप पक्ष से सम्बन्धित) मोटा देशी
कागज । वस्तुतः कागज या लिप्यासन की प्रकृति बताना बहुत आवश्यक है । कभीकभी इससे काल-निर्धारण में भी सहायता मिलती है, कागज के विविध प्रकारों
का ज्ञान भी अपेक्षित है। (घ) में आकार बताते हुए इंचों में लम्बाई-चौड़ाई बतायी गई है। (ङ) यह लेखन-सज्जा से सम्बन्धित है : हाशिये कैसे छोड़े गये हैं : दाँये और बाँये दोनों
.. ओर हाशिये हैं : 1. माहेश्वरी, हीरालाम (डॉ.)-जाम्भोजी, विष्णोई सम्प्रदाय और साहित्य, पृ. 120 1 .
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