Book Title: Pandulipi Vigyan
Author(s): Satyendra
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 408
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 374/पाण्डुलिपि-विज्ञान उक्त सूची में इन ग्रन्थागारों के विद्यमान होने का वर्ष भी दिया गया है। ये भी अधिकांशतः अनुमानाभित ही हैं । पांडुलिपि-विज्ञान की दृष्टि से इन ग्रन्थागारों के संकेत से, उनमें स्थान और स्थूल विशेषताओं से कुछ आवश्यक सामान्य ज्ञान मिल जाता है । परिशिष्ट-दो काल-निर्धारण : तिथि विषयक समस्या काल-निर्धारण में 'तिथि' विषयक एक समस्या तब सामने आती है जब तिथि का उल्लेख उस तिथि के स्वामी के नाम से किया जाता है। उदाहरणार्थ-'वीरसतसई' का यह दोहा है : "बीकम बरसां बतियो, गणचौचन्द गुणीस ।। बिसहर तिथ गुरु जेठ बदि, समय पलट्टी सीस ।" डॉ० शम्भूसिंह मनोहर ने बताया है कि "विषहर तिथि का यहाँ सीधा-सादा एवं स्पष्ट अर्थ है--'पंचमी' (विषधर की तिथि)।" आगे बताते हैं कि “वंश भास्कर" में सूर्यमल्ल ने तिथि निर्देश में प्रायः एक विशिष्ट पद्धति का अनुसरण किया है । वह यह कि उन्होंने कहीं-कहीं तिथियों का ज्योतिषशास्त्र में निर्देशित उनके स्वामियों के आधार पर नामोल्लेख किया है। उदाहरणार्थत्रयोदशी को कवि ने वंशभास्कर में 'मनसिज तिथ' कह कर ज्ञापित किया है, क्योंकि त्रयोदशी का स्वामी कामदेव है, यथा सक खट बसु सत्रह १७८६ समय, उज्ज मास अवदात । कूरम मालव कुंच किय, मनसिज तिथ अवदात ।। इसी भाँति चतुर्दशी को उन्होंने 'शिव की तिथि कह कर सूचित किया है, चतुर्दशी के स्वामी शिव होने के कारण "संवत मान अंक वसु सत्रह १७८६ । अरु सित बाहुल भालचन्द अह ।।" इस विवेचन से स्पष्ट है कि तिथि का उल्लेख उस तिथि के स्वामी या देवता के नाम से भी किया गया । "ज्योतिष तत्त्व सुधार्णक" नामक ज्योतिष ग्रन्थ में तिथियों के स्वामियों/देवताओं के नाम इस श्लोक द्वारा बताये गए हैं : अथ तिश्यधिदेवनामाहअग्निः प्रजापति गौरी गणेशोऽहि गुरु रविः । शिवो दुर्गान्तको विश्वोहरिः कामो हरः शशी । पितर; प्रति पदादीना तिथीनामधियाः क्रमात् ॥इति।। -~-वीरसतसई का एक दोहा : एक प्रत्यालोचना, ले. डॉ. शम्भूसिंह मनोहर, 'विश्वम्भरा', वर्ष 7, अंक 4, 1972 । For Private and Personal Use Only

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