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पाण्डुलिपियों के प्रकार / 163
चित्र दिए जाते हैं तो काव्य का कोई अंश चित्र के ऊपर या नीचे अंकित कर दिया जाता है । इस प्रकार ग्रंथ अनेक प्रचार से चित्रित किए जा सकते हैं। ये चित्र सजावट वाली चित्रशैली से भी युक्त बनाए जा सकते हैं। ऐसे चित्रों में हाशिए को विविध प्रकार की सुन्दर प्रकृतियों से सजाया जाता है, तब चित्र बनाया जाता है ।
इन चित्रों में अपने काल की चित्र कला का रूप उभर कर आता है । इनके कारण ऐसी पुस्तकों का मूल्य बहुत बढ़ जाता है ।
सामान्य स्याही में भिन्न माध्यम में लिखी पुस्तक
सामान्यतः पुस्तक लेखन में ताड़पत्रों को छोड़कर काली पक्की स्याही से ग्रंथ लिखे जाते रहे हैं । लाल स्याही को भी हम सामान्य ही कहेंगे, किन्तु इस प्रकार की सामान्य स्याही से भिन्न कीमती स्वर्ण या रजत अक्षरों में लिखे हुए ग्रंथ भी मिलते हैं । अतः इनका एक अलग वर्ग हो जाता है । ये स्वर्णाक्षर अथवा रजताक्षर हस्तलेखों के महत्त्व और मूल्य को बढ़ा देते हैं। साथ ही ये लिखवाने वाले की रुचि और समृद्धि के भी द्योतक होते हैं । स्वर्णाक्षर और रजताक्षरों में लिखे हुए ग्रंथों को विशेष सावधानी से रखा जायेगा और, उनके रखने के लिए भी विशेष प्रकार का प्रबन्ध किया जायेगा । स्पष्ट है कि स्वर्णाक्षरी और रजताक्षरी पुस्तकें सामान्य परिपाटी की पुस्तकें नहीं मानी जा सकतीं । ऐसी पुस्तकें बहुत कम मिलती हैं ।
अक्षरों के आकार पर आधारित प्रकार
अक्षर सूक्ष्म या अत्यन्त छोटे भी हो सकते हैं और बहुत बड़े भी । इसी आधार पर सूक्ष्माक्षरी पुस्तकों और स्थूलाक्षरी पुस्तकों के भेद हो जाते हैं । सूक्ष्माक्षरी पुस्तक के कई उपयोग हैं । पंचपाट में बीच के पाट को छोड़कर सभी पाठ सूक्ष्माक्षर में लिखने होते हैं, तभी पंचपाट एक पन्ने में आ सकते हैं । इसी प्रकार से एक ही पन्ने में 'मूल' के अंश के साथ विविध टीका टिप्पणियाँ भी ना सकती हैं ।
सूक्ष्माक्षरी : सूक्ष्माक्षरों में लिखी पुस्तक छोटी होगी, और सरलता से यात्रा में साथ ले जाई जा सकती है । वस्तुतः जैन मुनि यात्राओं में सूक्ष्माक्षरी पुस्तकें ही रखते थे ।
अक्षरों का आकार छोटे-से-छोटा इतना छोटा हो सकता है कि उसे देखने के लिए आतिशी शीशा आवश्यक हो जाता है । सूक्ष्माक्षर में लिखने की कला तब चमत्कारक रूप ले लेती है जब एक चावल पर 'गीता' के सभी अध्याय अंकित कर दिये जायँ ।
स्थूलाक्ष
पुस्तक बड़े-बड़े अक्षरों में भी लिखी जाती हैं । ये मंद-दृष्टि पाठकों को सुविधा प्रदान करने के लिए मोटे अक्षरों में लिखी जाती हैं अथवा इसलिये कि इन्हें पोथी की भाँति पढ़ने में सुविधा होती है ।
कुछ और प्रकार
अब जो प्रकार यहाँ दिए जा रहे हैं, वे प्राजकल प्रचलित प्रकार हैं। इन्हीं के आधार पर श्राज खोज रिपोर्टों में ग्रन्थ प्रकार दिए जाते हैं ।
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