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काल निर्धारण/283
10. दिल्लीपति (अकबर) और जहांगीर वाली महत्त्वपूर्ण घटनाओं का इतिहास में कोई संकेत नहीं मिलता। अतः वे तथ्य-विरुद्ध हैं।
____11. 'चरित' के अनुसार टोडर की सम्पत्ति का बँटवारा उनके उत्तराधिकारी पुत्रों के बीच किया गया । परन्तु बँटवारे का पंचायतनामा उपलब्ध है । इस 'पंचायतनामे' से प्रमाणित है कि यह बँटवारा उनके पुत्र और पोत्रों के बीच हुआ था ।1
12. इसमें कहा गया है कि तुलसी के शाप के फलस्वरूप हाथी ने गंग को कुचल डाला । ऐतिहासिक तथ्य यह है कि जिस गंग को हाथी से कुचलवाया गया था वह औरंगजेब का समकालीन था । औरंगजेब सं० 1715 में बादशाह हुआ था। इसलिये सं० 1639 में गंग की कथित दुर्घटना सम्भव नहीं हो सकती।
13. इसके अनुसार नाभादास 'विप्रसंत' थे । इस विषय में कोई साक्ष्य नहीं है । परम्परा में उनको 'हनुमानवंशी' अथवा डोम माना गया है।
14. 'चरित' में उल्लिखित तिथियों में से तुलसी के जन्म (सं० 1554, श्रावण शुक्ला 7, कर्क के बृहस्पति-चन्द्रमा, वृश्चिक के शनि), यज्ञोपवीत (सं० 1651, माघशुक्ला 5, शुक्रवार), विवाह (सं० 1583, ज्येष्ठ शुक्ला 13, गुरुवार), पत्नी निधन (सं० 1589, आषाढ़ कृष्णा 10, बुधवार), मानस-समाप्ति (सं० 1633, मार्गशीर्ष शुक्ला 5, मंगलवार) और स्वर्गवास (सं0 1680, श्रावण कृष्ण 3, शनिवार), की तिथियाँ गणना योग्य हैं । पुरातत्त्व-विभाग से जाँच करवा कर डॉ० रामदत्त भारद्वाज ने बतलाया है। कि इनमें से केवल यज्ञोपवीत और विवाह की तिथियाँ ही सत्यापित हैं । डॉ. माता प्रसाद गुप्त ने पत्नी-देहान्त की तिथि को भी शुद्ध माना है । शेष चार तिथियाँ किसी भी गणनाप्रणाली से शुद्ध नहीं उतरती । तुलसी के अंतेवासी की यह अनभिज्ञता 'चरित' की प्रामाणिकता को खण्डित करती है।"
संख्या 5 में डॉ सिंह ने तुलसी की विविध कृतियों के काल को अप्रामाणिक बतलाने के लिये उनकी प्रौढ़ता को आधार बनाया है। यह साहित्यिक तर्क महत्त्वपूर्ण है। 'गीतावली' कवि की प्रारम्भिक कृति नहीं हो सकती, वह प्रौढ़ कृति है। डॉ माता प्रसाद गुप्त ने अपने शोध प्रबन्ध 'तुलसीदास' में इन ग्रन्थों के रचनाकाल का निर्धारण वैज्ञानिक विधि से किया है। वह दृष्टव्य है।
संख्या 7 में दिया संवत् इसलिये अमान्य बताया गया है कि वह असंगत है : सूर तो 'सागर' पूरा कर चुके थे, और तुलसी 1616 तक एक भी रचना नहीं कर पाये थेतब सूर जैसे अंधे और वृद्ध व्यक्ति का 1616 से तुलसी जैसे विख्यात व्यक्ति से आशीष लेने जाने में संगति नहीं बैठती।
संख्या 8 में घटना को असम्भवता के आधार पर अप्रामाणिक बताया गया है। मीरां की मृत्यु 1603 तक हो चुकी थी, 1616 में पत्र लिखना असम्भव बात है ।
संख्या 9 में अप्रामाणिकता का आधार 'तथ्य-विरोध' है । तथ्य यह है केशव ने
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पनावर
पंचायतनामे के शब्द हैं-अनंदराम बिन टोडर विन देवराय व कँधई विन रामभद्र विन टोडर
मजकूर । 2. यह संवत् 1561 होना चाहिए । 3. गोस्वामी तुलसीदास, पृ० 48 । 4. तुलसीदास, पृ. 47।
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