Book Title: Pandulipi Vigyan
Author(s): Satyendra
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 389
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रख-रखाव 355 भली प्रकार दाब कर बचा पानी भी निकाल दें। इन्हें फिर बिजली के पंखे के नीचे कमरे के अन्दर सूखने के लिए फैला दें । ये या तो मेजों पर फैलाये जांय या फिर अरगनियों - की डोरियों पर लटकाये जांय । यदि कहीं बिजली का पंखा न हो तो भण्डार-कक्ष के सभी दरवाजे और खिड़कियाँ खोल दें, ताकि स्वच्छ वायु इन पांडुलिपियों को सुखा दे । इन्हें जब तब लोटते-पलटते रहने की आवश्यकता है, जिससे इनमें सभी ओर हवा लग सके । ऐसी पांडुलिपियों को बिजली के हीटरों या धूप में नहीं सुखाना चाहिये । इनके सूख जाने पर या तो इन पर बिजली का पाइरन (इस्तरी) किया जाय या फिर अच्छी दाब में दाबा जाय । जो कागज ढेर के ढेर एक साथ सूखे हैं, उनके कागज परस्पर चिपके मिलेंगे, अतः बहुत सावधानी से उपचार करना होगा। पहले इन्हें भीगे ब्लॉटिंगों (सोख्तों) के बीच में रख कर वा अन्य विधि से कुछ नम किया जाय, तब मौथरे चाकू से एक-दूसरे से हलके हाथ से अलग कर दिया जाय । पं० उदयशंकर शास्त्री जी ने इसके लिए विधि बताते हुए लिखा है "इसकी उत्तम विधि यह है कि एक मटके में पानी भर कर रख दिया जाय, जब वह मटका पानी से बिल्कूल सीम जाय तब उसका पानी निकाल कर फेंक दें और ग्रन्थ को उसी में लकडी के एक गुटके के ऊपर रख दें और उस मटके का मुंह बन्द कर दें। कम से कम चार दिन के बाद ग्रन्थ को निकाल लेना चाहिये । इस पद्धति से ग्रन्थ के चिपके हुए पन्ने अपने-आप खुल जाते हैं ।" रख-रखाव सम्बन्धी इन समस्याओं का स्थूल विवरण यहाँ दिया गया है जिससे मात्र दिशा-निर्देश होता है । फिर भी, इन समस्याओं के लिए तथा इनके अतिरिक्त और भी समस्याएँ सामने आ सकती हैं। उनके लिए इन विषयों के विशेषज्ञों से सहायता लेनी चाहिये । नेशनल पार्काइब्ज से हर प्रकार की सहायता मिल सकती है। आर्काइब्ज ने रखरखाव का एक डिप्लोमा पाठ्य-क्रम भी चलाया है । कागज को अम्ल (Acid) रहित करना कागज के जीर्ण होने के कारणों की भी खोज करने के प्रयत्न हुए हैं। बाह्य कारणों का उल्लेख हो चुका है । उनका पता तो लगा ही लिया है, पर कागज के अन्दर कुछ ऐसे तत्त्व अवश्य हैं, जो उसके ह्रास के या उसकी जीर्णता के कारण बनते है, इस सम्बन्ध में बहुत अनुसन्धान, विशेषतः 18वीं और 19वीं शताब्दी के कागज पर किये गये हैं । निष्कर्ष यह निकाला कि कागज में अम्ल की अधिकता ही आंतरिक रूप से उसकी जीर्णता का कारण है, भले ही उसे प्रादर्श भण्डारों में रखा जाय, जहाँ तापमान 22-250 में और अपेक्षित नपी या आर्द्रता 45-55 प्रतिशत हो, कागज प्रान्तरिक अम्लता के कारण जीर्ण होगा । यह अम्लत्य कुछ तो उसमें बनाये जाने की प्रक्रिया में ही मिलता है, कुछ स्याही से तथा कुछ उन वस्तुओं से और वातावरण से जिनमें कागज रहता है । अम्ल-निवारण अतः यह प्रावश्यक हो गया कि कागज को निरोग करने के लिए उसे अम्ल-रहित 1. शास्त्री, उदयशंकर-भारतीय साहित्य (जुलाई, 1949)- 121 । For Private and Personal Use Only

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