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354/पांडुलिपि-विज्ञान
यदि डैक्सट्राइन पेस्ट न मिल सके तो स्टार्च या मैदा की पतली लेई से काम चलाया जा सकता है । आजकल सरेस या लेई का उपयोग किया जाने लगा है। परतोपचार (लेमीनेशन)
परतोपचार के लिए एक यन्त्र अपेक्षित होता है। ऐसा यन्त्र भारतीय अभिलेखागार (नेशनल पार्काइब्स) में लगा है। यह बहुत व्यय-साध्य है। जो बहुत समर्थ ग्रन्थागार हैं वे : नेशनल पार्काइन्स से विस्तृत जानकारी प्राप्त कर अपने भण्डार में यह दाब-यन्त्र (प्रेस) लगवा सकते हैं । इस यन्त्र से सैल्यूलोज ऐसीटेट फाइल के परत पांडुलिपि-पत्र के दोनों ओर जड़ दिये जाते हैं। पांडुलिपि के पत्रों को और पुष्ट करने के लिए टिश्यू कागज भी फॉइल के साथ-साथ जड़ दिया जाता है । यह यन्त्र तो स्टीम से काम करता है। डब्ल्यू० जे० बरो (W. J. Barrow) ने एक विद्युत्-चालित-यन्त्र भी इसी कार्य के लिए निर्मित किया है । ये दोनों यन्त्र ही व्यय-साध्य हैं । हाथ से परतोपचार
किन्तु 1952 में भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार की प्रयोगशाला के श्री प्रो० पी० गोयल ने एक नवीन प्रणाली का आविष्कार किया था जिसे हाथ से परतोपचार की प्रणाली कहते हैं। यह प्रणाली अब किसी भी ग्रन्थागार में काम में लायी जा सकती है। इसमें न दाब की आवश्यकता है न गरमी पहुंचाने की आवश्यकता है ।
एक पॉलिश किये हुए शीशे के तख्ते पर उपचार-योग्य पांडुलिपि का पत्र फैला दिया जाता है । उसे साफ करके ही बिछाना होता है । इसके ऊपर सैल्यूलोज ऐसीटोन फॉइल, जो मूल पांडुलिपि के पन्ने से चारों ओर से कुछ बड़ा हो, फैला देते हैं । इसी के आकार का एक टिश्यू कागज इस फॉइल पर भली प्रकार बिछा दें : अब रूई का एक फाहा लेकर उसे ऐसीटोन में डुबो कर पोले-पोले टिश्यू कागज पर मलें। इस प्रकार ऐसीटोन का हलका लेप टिश्यू पर हो जाता है, जिसमें से ऐसीटोन छनकर सैल्यूलोज फॉइल तक पहुंचता है और उसे अर्द्ध-प्लास्टिक बना देता है । इस प्रकार टिश्यू कागज को पांडुलिपि पर भली प्रकार चिपका लेता है । सूख जाने पर दूसरी ओर भी इसी प्रकार उपचार करना चाहिए।
इस विधि के कई लाभ स्वीकार किये गये हैं। एक तो व्यय अधिक नहीं, दूसरे, विधि सरल है, तीसरे, इसमें स्याही नहीं फैलती, कागजों पर लगी मुहरें भी जैसी की तैसी बनी रहती हैं। पानी से भीगी पांडुलिपियों का उपचार
यदि पांडुलिपियाँ पानी में भीग गई हैं तो उन्हें तुरन्त बाहर निकाल लें और उनका उपचार करें, अन्यथा फफूंद आदि का भय रहता है ।
तुरन्त बाहर निकाल कर पहले जितना पानी उनमें से निचोड़ा जा सके, निचोड़ लें। फिर उन्हें खोल-खोल कर कमरे के अन्दर रखें और बिजली के पंखे से हवा दें। साथ ही प्रत्येक पन्ने को एक-दूसरे से अलग कर दें, यदि कुछ पन्ने चिपके दिखायी दें, तो उनको हलके से मौथरें (बिना धार के) चाकू से हलके से एक-दूसरे से अलग कर दें। अब प्रत्येक दो पन्नों के बीच में मोमी कागज या ब्लॉटिंग (सोख्ता) का पन्ना लगा दें। अब उन्हें
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