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रख-रखाव/359
पानी
डाल दीजिये, और सबको एकमेल कर दीजिये। सबके भली-भाँति मिल जाने पर 6-8 मिनट तक पकाइये, तब प्राग से उतार लीजिये । डैक्स्ट्राइन की लेई तैयार हैं । मैदे (स्टार्च) की लेई मैदा
250 ग्राम
5.00 किलो लौंग का तेल
40 ग्राम सफ्फरोल
40 ग्राम बेरियम कानेट
80 ग्राम बनाने की विधि ऊपर जैसी है, केवल डेक्स्ट्राइन का स्थान मैदा ले लेती है। चमड़े की जिल्दों की सुरक्षा
कुछ पाण्डुलिपियाँ चमड़े की जिल्दों में मिलती हैं। चमड़ा मजबूत वस्तु है और पाण्डुलिपि की अच्छी रक्षा करता है। फिर भी वातावरण के प्रभाव से कभी-कभी यह भी प्रभावित होता है जिससे चमड़ा भी तड़कने लगता है, अतः चमड़े की सुरक्षा भी श्रावश्यक है।
इसके लिए पहले तो चमड़े को निरम्ल करना होगा । एक मुलायम कपड़े की गदेली से पहले जिल्द के चमड़े से धूल के करण बिल्कुल हटा दें। फिर 1-2 प्रतिशत सोडियम बैनजोएट (Sodium Benzoate) के घोल से भीगे फाहे से जिल्द पर वह घोल पोत दें और जिल्द को सूख जाने दें।
इसके बाद नीचे दी गई वस्तुओं से बने मिक्शचर से उसे उपचारित करें : 1. लेनोलिन एन्होड्स
300 ग्राम 2. शहद के छत्ते का मोम
15 ग्राम 3. सीडर वुड तेल
30 मिग्रा० 4. बेनजीन (Benzene)
350 मिग्रा० पहले बेनजीन को कुछ गरम करके उसमें मोम मिला दिया जाता है । तब सीडरवुड तेल मिलाते हैं और बाद में लेनोलिन इस मिक्शचर को खूब हिला कर काम में लेना चाहिये। इसे एक ब्रश से चमड़े पर भली प्रकार चुपड़ देना चाहिये । उसके सूख जाने पर भण्डार में यथास्थान रख दिया जाना चाहिये । इससे चमड़े की प्राव पहले जैसी हो जाती है, और वह भली प्रकार पुष्ट भी हो जाता है । । यह मिक्शचर अत्यन्त ज्वलनशील है, अतः प्राग से दूर रखना चाहिये । यह सावधानी बहुत आवश्यक है ।
वस्तुतः रख-रखाव का पूरा क्षेत्र 'प्रबन्ध-प्रशासन' के अन्तर्गत आता है । प्रबन्धप्रशासन एक अलग ही अंग है, जिस पर अलग से ही विचार किया जा सकता है । इसके लिए कितने ही प्रकार के प्रशिक्षण भी दिये जाने लगे हैं, यह सीधे हमारे क्षेत्र में नहीं आता है, पर रख-रखाव का पाण्डुलिपि पर बहुत प्रभाव पड़ता है, इसलिए कुछ चचा इस विषय की यहाँ भारतीय अभिलेखागार (नेशनल पार्काइब्ज) से प्रकाशित दो महत्त्वपूर्ण पुस्तकों के प्राधार पर कर दी गई है।
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