Book Title: Pandulipi Vigyan
Author(s): Satyendra
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 399
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिशिष्ट-एक/365 ___1 2 16. 381 ई०.. 3 ... कुभा 17. 383 ई० 18. 383 ई० . चंग-अन (चीन) लिअंग-पाउ (चीन) यहाँ के श्रमण संघभूति ने चीनी भाषा में अनुवाद किया। गौतम संघ देव का अनुवाद पीठ था। कुमार जीव श्रमण ने यहाँ बहुत से बौद्ध ग्रन्थों का अनुवाद सन् 402 से 412 के बीच किया। 19. 500 ई० से थानेश्वर विश्वविद्यालय । इसका उल्लेख ह्वनसांग ने भी किया है। हर्ष के गुरु 'गुणप्रभ' का इस विश्वविद्यालय से सम्बन्ध रहा होगा। 20. 568 ई० से दुड्डा बौद्ध विहार बलभी सौराष्ट्र की राजधानी था । यहाँ पूर्व (वलभी) 84 जैन मन्दिर थे। यह बौद्ध विद्या केन्द्र हो गया था । विश्वविद्यालय और पुस्तकालय यहाँ थे। Balabhi.... It became the capital of Saurashtra of Gujrat. It contained 84 Jain temples (SRAS XIII, 159) and afterwards became the seat of Buddhist learning in Western India in the seventh century A.D., as Nalanda in Eastern India (Ancient Geographical Dictionary). 21. 630 ई० से पूर्व नालंदा हनत्सांग के भारत आगमन के समय यह प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था। उस समय इसमें धर्मपाल के शिष्य और उत्तराधिकारी शीलभद्र, भावाविवेक, जयसेन, चन्द्रगोमिन, गुणमति, वसुमित्र, ज्ञानचन्द्र एवं रत्नसिंह आदि प्रसिद्ध विद्वान् यहाँ प्राध्यापक थे। इनका उल्लेख ह्वेनसांग ने किया है। ज्ञानचंद्र एवं रत्नसिंह इत्सिग के भी प्राध्यापक थे, ऐसा इत्सिग ने लिखा है । ह्वेनसांग के समय में 10000 भिक्षु इसमें रहते For Private and Personal Use Only

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