Book Title: Pandulipi Vigyan
Author(s): Satyendra
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

View full book text
Previous | Next

Page 398
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 364/पाण्डुलिपि-विज्ञान 1 2 10. 160 ई० आडिवीसां (उड़ीसा) 11. 160 ई० धान्यकूट 12. 222 ई० ... मध्य भारत अशोक यहाँ रहे थे । विक्रमादित्य की राजधानी थी । यह नव-रत्नों की नगरी है । यहाँ ग्रन्थागार थे । भगवान कृष्ण के गुरु सांदीपनि का आश्रम अंकपाद उज्जैन से कुछ ही दूर है। महाभारत युग में यहाँ प्रसिद्ध विद्यापीठ था, भर्तृहरि की गुफा भी उज्जैन में है। भर्तृहरि विद्वान और योगी थे । उनके पास भी अच्छा ग्रन्थागार था। नागार्जुन ने विहार स्थापित कराये । इनमें पुस्तकालय होंगे ही। नागार्जुन ने यहाँ के मन्दिरों की परिख (railing) बनवायी। नागार्जुन ने बौद्ध विश्वविद्यालय भी स्थापित किया था, पुस्तकालय होगा ही। यहाँ से धर्मपाल इस वर्ष चीन गया । चीन में इसने 'पाति मोख्ख' का अनुवाद 250 ई० में किया था। Sang-hurui श्रमण ने विहार बनवाया। 251 ई० में अनुवाद कार्य आरम्भ किया। अनुवाद पीठ । 313 से 317 तक 'तुनह्वाङ' के श्रमण धर्मरक्ष ने अनुवाद कार्य किया। इसमें 30,000 वलिताएँ थीं। 1957 वि० में अनायास ही इनका पता चला था । सहस्र बुद्ध गुफा के चैत्थ की कुछ पाण्डुलिपियाँ भारत में मध्य एशियाई संग्रहालय में हैं । (266 ई० में 'चुफान्हु' अर्थात् 'धर्मरक्ष' श्रमण तुनह्वाङ लोपांग गया था। 366 से 100 वर्ष पूर्व ही 'तुनह्वाङ' में अच्छा पुस्तकालय स्थापित हो चुका होगा ।) बू का राज्य 14. 252 ई० लोपांग (चीन) 15. 366 ई० तुनह्वाङ (मध्य एशिया) [गोवी रेगिस्तान के किनारे] For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415