________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
काल निर्धारण/285
मकता तो दोनों समकालीन हो जाते और कालक्रम में तुलसी पहले रखे जाते क्योंकि वे इतनी ख्याति पा चुके थे कि मीराँ उनसे परामर्श मांग सकी। मीराँ उनसे उम्र में छोटी सिद्ध होती, पर जैसा हम ऊपर देख चुके हैं कि यह जनश्रुति सत्यापित नहीं होती। मीरा तुलसी से पहले ही दिवंगत हो चुकी थीं । अतः जनश्रुति का मूल्य उस समय तक नगण्य है जब तक कि अन्य ठोस आधारों से वह प्रामाणिक न सिद्ध हो जाय । फिर भी, जनश्रुति का मंकलन और अध्ययन अपेक्षित तो है ही। उसमें से कभी-कभी महत्त्वपूर्ण खोई कड़ी मिल सकती है। इतिहास एवं ऐतिहासिक घटनाएँ
ऐतिहासिक घटनाएँ बाह्य साक्ष्य हैं । इनकी सहायता प्रायः किसी अन्तःसाक्ष्य के सहारे से ली जा सकती हैं । स्वतन्त्र रूप से भी इतिहास सहायक हो सकता है । जैसेवामन के सम्बन्ध में राजतरंगिणी में उल्लेख है कि वह जयापीड़ का मन्त्री था और व्यूहलर ने बताया है कि काश्मीरी पंडितों में यह जनश्रुति है कि यह जयापीड़ का मन्त्री वामन ही 'काव्यालंकार-सूत्र' का रचयिता और 'रीति' सम्प्रदाय का प्रवर्तक है। इस ऐतिहासिक आधार पर 'वामन' का काल 800 ई० के लगभग निर्धारित किया जा सकता है। इस सम्बन्ध का कोई सन्दर्भ हमें बामन की कृति में नहीं मिलता । इतिहास का उल्लेख और अनुश्रुति से पुष्टि-ये दो बातें ही इसका आधार हैं । हाँ, अन्य वहिःसाक्ष्यों से पुष्टि अवश्य हाता है । अतः किसी भी ऐसे स्वतन्त्र ऐतिहासिक उल्लेख की अन्य विधि से भी पुष्टि की जानी चाहिये।
कवि के अन्तःसाक्ष्य के सहारे इतिहास या ऐतिहासिक घटना के आधार पर कालनिर्णय करने की दृष्टि से 'भट्रि' को ले सकते हैं।
भट्टि ने 'भट्टि काव्य' में लिखा है कि 'काव्य मिदं विहितं मया वलाभ्यां श्रीधरसेननरेन्द्रपालितायाम्"।
इससे प्रकट होता है कि भट्टि ने राजा श्रीधरसेन के आश्रय में वलभी में 'भट्टि काव्य' की रचना की, किन्तु रचने का काल नहीं दिया । अब इनका काल-निर्धारण करने के लिए वलभी के श्रीधरसेन का काल निश्चित करना होगा, और इसके लिये इतिहास से सहायता लेनी होगी। इतिहास से विदित होता है कि 'श्रीधरसेन प्रथम' का कोई लेख नहीं मिलता। श्रीधरसेन द्वितीय का सबसे पहला लेख वलभी सं० 252 का है जो 571 ई० का हुआ । श्रीधरसेन चतुर्थ का अन्तिम लेख वलभी संवत् 332 का मिला है, जो ई० सन् 651 का हुआ । इसी प्रकार श्रीधरसेन के उत्तराधिकारी द्रोणसिंह का लेख वलभी संवत् 183 अर्थात् 502 ई. का मिला है । अत: भट्टि का समय 500 से 650 ई. के बीच होना चाहिये । मन्दसौर के सूर्य मन्दिर के शिलालेख का सन् 473 ई. है। इसके लेखक वत्सभट्टि को बी. सी. मजूमदार ने 'भट्टि काव्य' से साम्य के आधार पर भट्टि माना है । तब भट्टि श्रीधरसेन प्रथम के समय में हुए जो 500 ई. से पहले था।
स्पष्ट है कि श्रीधरसेन नाम के चार राजा हुए, अतः समस्या रही कि किस श्रीधरसेन के समय भट्टि हुए, तब 'काव्य साम्य' के आधार पर वत्सभट्टि और 'भट्टि काव्य' रचयिता भट्टि को एक मान कर वत्सभट्टि के 413 ई. के लेख से भट्टि को प्रथम श्रीधरसेन के समय 500 ई. से पहले का मान लिया गया।
For Private and Personal Use Only