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312 पाण्डुलिपि-विज्ञान
होऊँ' और यदि शब्द-रूप हो, मानु सही तो' तो अर्थ होगा कि' 'यदि मैं मान (रूठने को
1 2 3 4 5 सहन करु तो इससे स्पष्ट है कि अक्षरावली दोनों में बिल्कुल एक-सी है : 'मा नु स हों तों'। केवल शब्द रूप खड़े करने से भिन्नता आई है । पहले पाठ में 1, 2, 3 अक्षरों को एक शब्द माना गया है और '3' भी स्वतन्त्र शब्द है और 4 भी, दूसरे पाठ में शब्द-रूप बनाने में 1+2 को एक शब्द, 3+4 को दूसरा, 5 को स्वतन्त्र शब्द पूर्ववत् ।
फलतः पहले पाठ में जो शब्द-रूप बनाए गए, उनसे एक अर्थ मिला। उन्हीं अक्षरों से दूसरे पाठ में अन्य शब्द-रूप खड़े किये गये जिससे उस अक्षरावली का अर्थ बदल गया ।
इस उदाहरण से अत्यन्त स्पष्ट है कि अर्थ का आधार 'शब्द-रूप' है । 'शब्द-रूप' में मूल आधार 'अक्षरयोग' है, ये अक्षर-योग हमें लिपिकार या लेखक द्वारा लिखे गये पृष्ठो से मिलते हैं।
पाण्डुलिपि में शब्द-भेद हम निम्न प्रकार कर सकते है : 1. मिलित शब्द
इसमें शब्द अपना रूप अलग नहीं रखते । एक-दूसरे से मिलते हुए पूरी पंक्ति को एक ही शब्द बना देते हैं, ऐसा प्रायः पांडुलिपि-लेखन की प्राचीन प्रणाली के फलस्वरूप होता है, यथा “मानुसहोंतोवहींसखा नवसौंमिलिगोकुलगोपगुवारनि" ।
___ इसमें से शब्द-रूप खड़े करना पाठक का काम रहता है और वह अपनी तरह से शब्द खड़े कर सकता है : यथा-मानु' स.' तोव' हीर' सखान'........आदि शब्द होंगें या 'मानुस' हों' तो' वहीं रसखान........आदि शब्द होगें । मिलित शब्दों से पाठक उन्हें अपने ढंग से 'भंग' करके मुक्त शब्दों का रूप दे सकता है और अपनी तरह से अर्थ निकाल सकता है। 2. विकृत शब्द
(अ) मात्रा विकृत (ब) अक्षर विकृत (स) विभक्त अक्षर विकृति युक्त (द) युक्ताक्षर विकृति युक्त (त) घसीटाक्षर विकृति युक्त
(थ) अलंकरण निर्भर विकृति युक्त 3. नव रूपाक्षरयुक्त शब्द 4. लुप्ताक्षरी शब्द 5. पागमाक्षरी (6. विपर्याक्षरी शब्द 7. संकेताक्षरी शब्द (Abbreviated Words) 8. विशिष्टार्थी शब्द (Technical Expression)1 1. Sircar, D. C. Indian Epigraphy P. 327.
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