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रख-रखाव/335
दूसरी-तीसरी शताब्दी ई० धम्मपद
खोतान (मध्य एशिया) भाषा-प्राकृत,
से प्राप्त । लिपि-खरोष्ठी। ) चौथी शताब्दी ई० संयुक्तागम सूत्र (संस्कृत) खोतान से प्राप्त । छठी , ,
मि० बेबर को प्राप्त ग्रन्थ पाठवीं , , अंकगणित
बख्शाली से प्राप्त । इन पर महामहोपाध्याय प्रोझाजी की टिप्पणी है कि "ये पुस्तकें स्तूपों के भीतर रहने या पत्थरों के बीच गढ़े रहने से ही उतने दीर्घकाल तक बच पायी हैं, परन्तु खुले वातावरण में रहने वाले भूर्जपत्र के ग्रन्थ ई०स० की 15वीं शताब्दी से पूर्व के नहीं मिलते, जिसका कारण यही है कि भूर्जपत्र, ताड़पत्र या कागज अधिक टिकाऊ नहीं होता।"1
इन उल्लेखों से विदित होता है कि1. ताड़पत्र-भूर्जपत्र आदि यदि कहीं स्तूप आदि में या पत्थरों के बीच बहुत भीतर
दाब कर रखे जाएँ तो कुछ अधिक काल तक सुरक्षित रह सकते हैं । 2. ऐसे खुले ग्रन्थ 4-5 शताब्दी से पूर्व के नहीं मिलते अर्थात् 4-5 शताब्दी तो चल
सकते हैं, अधिक नहीं।
इसी प्रकार की कागज के ग्रन्थों की भी स्थिति है । पांचवीं शताब्दी ई० 4 ग्रन्थ
कुगिअर (म०ए०) में (मि० बेवर को मिले) यारकंद से 60 मील भारतीय गुप्त-लिपि में दक्षिण, जमीन में गड़े लिखे
मिले। संस्कृत ग्रन्थ
काशगर (म०ए०) में कागज के सम्बन्ध में भी अोझाजी ने यही टिप्पणी दी है कि "भारतवर्ष के जलवायु में कागज बहुत अधिक काल तक नहीं रह सकता।"
ऊपर उदाहरणार्थ जो तथ्य दिये गये हैं उनसे यह सिद्ध होता है कि ताड़पत्र, भूर्जपत्र, या कागज या ऐसे ही अन्य लिप्यासन यदि बहुत नीचे या बहुत भीतर दाब कर रखे जायें तो दीर्घजीवी हो सकते हैं । पर यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि ऐसे दा हुए ग्रन्थ भी ई० सन् की पहली-दूसरी शताब्दी से पूर्व के प्राप्त नहीं होते ।
इसका एक कारण तो भारत पर विदेशी आक्रमणों का चक्र हो सकता है । ऐसे कितने ही अाक्रमणकारी भारत में पाये जिन्होंने मन्दिरों, मठों, बिहारों, पुस्तकालयों, नगरों, बाजारों को नष्ट और ध्वस्त कर दिया, जला दिया।
अपने यहाँ भी कुछ राजा ऐसे हुए जिन्होंने ऐसे ही कृत्य किये । अजयपाल के सम्बन्ध में टॉड ने लिखा है कि
1. भारतीय प्राचीन लिपि-माला, पृ०1441 2. वही, पृ० 1451
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