Book Title: Pandulipi Vigyan
Author(s): Satyendra
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 370
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 336/पाण्डुलिपि-विज्ञान "इसके शासन में सबसे पहला कार्य यह हुआ कि उसने अपने राज्य के सब मन्दिरों को, वे आस्तिकों के हों अथवा नास्तिकों के, जैनों के हों अथवा ब्राह्मणों के, नष्ट करवा दिया । इसी में आगे यह भी बताया गया है कि "समधर्मानुयायियों के मतभेदों और वैमनस्यों के कारण भी लाखों की क्षति पहुँची है । उदाहरणार्थ-तपागच्छ और खरतरगच्छ नामक मुख्य (जैन धर्म के) भेदों के आपसी कलह के कारण ही पुराने लेखों का नाश अधिक हुअा है और मुसलमानों द्वारा कम ।"2 टॉड को यह तथ्य स्वयं विद्वान् जैनों के मुख से सुनने को मिला। ___ अतः ग्रन्थों और लेखों के नाश में साम्प्रदायिक विद्वेष का भी बहुत हाथ रहा है, सम्भवतः बाहरी आक्रमणों से भी अधिक । यद्यपि अलाउद्दीन के आक्रमण का उल्लेख करते हुए टॉड ने लिखा है कि "सब जानते हैं कि खून के प्यासे अल्ला (अभिप्राय अलाउद्दीन से है) ने दीवारों को तोड़कर ही दम नहीं ले लिया था वरन् मन्दिरों का बहुत-सा माल नींवों में गड़वा दिया, महल खड़े किये और अपनी विजय के अन्तिम चिह्नस्वरूप उन स्थलों पर गधों से हल चलवा दिया, जहाँ वे मन्दिर खड़े थे ।"3 अतः इन स्थितियों के कारण ग्रन्थों के रख-रखाव के साथ ग्रन्थागारों या पोथीभंडारों को भी ऐसे रूप में बनाने की समस्या थी कि किसी आक्रमणकारी को आक्रमण करने का लालच ही न हो पाये । इसीलिये ये भण्डार तहखानों में रखे गये । टॉड ने बताया है कि “यह भण्डार नये नगर के उस भाग में तहखानों में स्थित हैं जिसको सही रूप में अणहिलवाड़ा का नाम प्राप्त हुअा है। इस स्थिति के कारण ही यह अल्ला (उद्दीन) की गिद्ध-दृष्टि से बचकर रह गया अन्यथा उसने तो इस प्राचीन श्रावास में सभी कुछ नष्ट कर दिया था ।" टॉड महोदय का यही विचार है कि भू-गर्भ स्थित होने के कारण यह भण्डार बच गया, क्योंकि ऊपर ऐसा कोई चिह्न भी नहीं था जिससे आक्रमणकर्ता यह समझ कर अाकर्षित होता कि यहाँ भी कोई नष्ट करने योग्य सामग्री है। "जैन ग्रन्थ भंडार्स इन राजस्थान' में डॉ० कासलीवाल जी ने भी बताया है कि : अत्यधिक असुरक्षा के कारण ग्रन्थ भण्डारों को सामान्य पहुँच से बाहर के स्थानों पर स्थापित किया गया । जैसलमेर में प्रसिद्ध जैन-भण्डार इसीलिए बनाया गया कि उधर रेगिस्तान में आत्रमण की कम सम्भावना थी। साथ ही मन्दिर में भूगर्भस्थ कक्ष बनाये जाते थे और आक्रमण के समय ग्रन्थों को इन तहखानों में पहुँचा दिया जाता था । सांगानेर, आमेर, नागौर, मौजमाबाद, अजमेर, जैसलमेर, फतेहपुर, दूनी, मालपुरा तथा कितने ही अन्य (जैन) मन्दिरों में आज भी भूगभित कक्ष हैं, जिनमें ग्रन्थ ही नहीं मूर्तियाँ भी रखी जाती हैं । आमेर में एक वृहद् भण्डार था, जो भू-गभं कक्ष में ही था और अभी केवल तीस वर्ष पहले ही ऊपर लाया गया। जैसलमेर के प्रसिद्ध भण्डार का सम्पूर्ण अंश तहखाने में ही सुरक्षित था । ऐसे तहखानों में ही ताड़पत्र की पुस्तकें तथा कागज की बहुमूल्य पुस्तकें रखी 1. टॉड, जेम्स-पश्चिमी भारत की यात्रा, पृ. 202 । 2. वही, पृ. 2981 3. वही, पृ. 2371 4. वही, पृ 2461 For Private and Personal Use Only

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