Book Title: Pandulipi Vigyan
Author(s): Satyendra
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 383
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रख-रखाव/349 हैं । ये अपना मार्ग दीवालों पर बनाती हैं जो मिट्टी से ढकी छोटी पतली सुरंगों के रूप में यह मार्ग दिखायी पड़ता है । पुस्तकों को भीतर से, बाहर से सब अोर से, खाती है, पहले भीतर ही भीतर खाती है। ___इनको जीवित मारने का कोई लाभ नहीं होता क्योंकि दीमकों की रानी औसतन 30 हजार अंडे प्रतिदिन देती है। कुछ को मार भी डाला गया तो इनके आक्रमण में कोई अन्तर नहीं पड़ सकता। इससे रक्षा का एक उपाय तो यह है कि नीचे की दीवाल के किनारे-किनारे खाई खोदी जाय और उसे कोलतार तथा क्रियोसोट (Creosote) तेल से भर दिया जाय । इन रासायनिक पदार्थों के कारण दीमक मकान में प्रवेश नहीं कर सकेगी। ____ यदि दीमक मकान में दिखायी पड़ जाय तो पहला काम तो यह किया जाना चाहिये कि वे समस्त स्थान, जहाँ से इनका प्रवेश हो सकता है, जैसे-दरारें, दोवालों के जोड़ या सभी फर्श में तड़के हुए स्थान और छिद्र तथा दीवालों में उभरे हुए स्थान, इन सभी को तुरन्त सीमेन्ट और कंकरीट से भर कर पक्का कर दिया जाय । यदि ऐसा लगे कि फर्श कहीं-कहीं से पोला हो गया है या फूल आया है या अन्दर जमीन खोखली है, तो ऊपर का फर्श हटा कर इन सभी पोले स्थानों और खोखलों को सफेद संखिया (White arsenic), डी० डी० टी० चूर्ण, पानी में सोडियम प्रार्सेनिक 1 प्रतिशत का घोल या 5 प्रतिशत डी० डी० टी० का घोल, 1 : 60 (4-5 लीटर प्रति मीटर) के हिसाब से उनमें भर दें । जब ये स्थान सूख जायें तब इन्हें कंकरीट सीमेन्ट से भर कर फर्श पक्का कर दिया जाय । ऐसी दीवालें भी कहीं से पोली या खोखली दिखाई पड़ें तो इनकी चिकित्सा भी इसी विधि से करदी जानी चाहिये । यदि लकड़ी की बनी चीजें, किवाड़ें आदि दीवालों से जुड़ी हुई हों तो ऐसे समस्त जोड़ों पर क्रियोसोट तेल चुपड़ देना होगा, यदि दीमक का प्रकोप अधिक है तो प्रति छठे महीने जोड़ों पर यह तेल लगाना होगा। दीमक वाले मकान में दीवालों में बनी अलमारियों का उपयोग निषिद्ध है । यदि लकड़ी की अलमारियाँ या रैक है तो इन्हें दीवालों से कम से कम 15 सें० मी० दूर रखें और इनकी टाँगें कोलतार, क्रियोसोट तेल या डीलड्राइन ऐमलसन से हर छठे महीने पोत देना चाहिये। जमीन में दीमक हो तो आवश्यक है कि इन अलमारियों की टांगों को धातु के पात्रों में रखें और इन पात्रों में कोलतार या क्रियोसोट तेल भर दें। इससे भी पहले लकड़ी की जितनी भी चीजें हैं सभी को 20 प्रतिशत जिंक क्लोराइड को पानी में घोल बनाकर उससे पोत दें। सबसे अच्छा तो यह है कि लकड़ी की वस्तुओं का उपयोग किया ही न जाय और स्टील के रैकों और अलमारियों का उपयोग किया जाय। .. ___ इस प्रकार इस भयानक शत्रु से रक्षा हो सकती है। इन सभी बातों के साथ महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भंडारण के स्थान पर धूल से, मकड़ी के जालों से और ऐसी ही अन्य गन्दगियों से स्वच्छ रखना बहुत आवश्यक है । भंडारण के स्थान पर खाने-पीने की चीजें नहीं पानी चाहिये, उसमें रासायनिक पदार्थ भी नहीं रखे जाने चाहिये । सिगरेट आदि पीना पूर्णतः वजित होना चाहिये । आग बुझाने का यन्त्र भी पास ही होना चाहिये । For Private and Personal Use Only

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