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346/पाण्डुलिपि-विज्ञान
के बाद यह सिलिका गेल और नमी नहीं सोख सकेगा क्योंकि वह स्वयं उस नमी से परिपूरित हो चुका होगा, अतः सिलिका गेल की दूसरी मात्रा उन तश्तरियों में रखनी होगी। पहले काम में आये सिलिका गेल को खुले पात्रों में रख कर गरम कर लेना चाहिये, इस प्रकार वह पुनः काम में आने योग्य हो जाता है ।
उक्त साधनों से वातावरण की नमी तो कम की जा सकती है, पर यह नमी कभीकभी कमरों में सीलन (Dampne s) होने से भी बढ़ती है। इस कारण यह आवश्यक है । कि भंडारण के कमरों को पहले ही देख लिया जाय कि उनमें सीलन तो नहीं है । भवन बनाने के स्थान या बनाने की सामग्री या विधि में कोई कमी रह गई है, इससे सीलन है, अतः मकान बनाते समय ही यह ध्यान रखना होगा कि भंडार-भवन सीलन-मुक्त विधि से बनाया जाय । यही इसका एकमात्र उपाय है । नमी और सील को कम करने में खुली स्वच्छ वायु का उपयोग भी लाभप्रद होता है, अतः भंडारण में खिड़कियाँ आदि इस प्रकार बनायी जानी चाहिये कि भंडार की वस्तुओं को खुली हवा का स्पर्श लग सके । कभी-कभी बिजली के पंखों से भी हवा की जा सकती है।
किन्तु साथ ही इस बात का ध्यान भी रखना होगा कि भंडार-कक्ष में वस्तुओं पर, कागज-पत्रों पर सीधी धूप न पड़े । इससे होने वाली हानि का उल्लेख ऊपर किया जा चुका है । यदि ऐसी खिड़कियाँ हों जिनमें से धूप सीधे ग्रन्थों पर पड़ती है, तो इन खिड़कियों में शीशे लगवा कर पर्दे डाल देने चाहिये, और इस प्रकार धूप के स्पर्श से रक्षा करनी चाहिये।
पांडुलिपियाँ रखने की अलमारियों का भी सुरक्षा की दृष्टि से बहुत महत्त्व है । एक तो अलमारियाँ खुली होनी चाहिये जिससे उन्हें खुली हवा लगती रहे और सील न भरे । दूसरे, ये अलमारियाँ लोहे की या किसी धातु की हों, और इन्हें दीवाल से सटा कर न रखा जाय, और परस्पर अलमारियों में भी कुछ फासला रहना चाहिए इससे सील नहीं चढ़ेगी । ये अलमारियाँ ही आदर्श मानी जाती हैं । दीवालों में बनायी हुई सीमेन्ट की अलमारियाँ भी ठीक नहीं बतायी गई हैं । धातु की अलमारियों में सबसे बड़ी सुविधा यह है कि इन पर मौसम और कीटों (दीमक आदि) का प्रभाव नहीं पड़ता, जो लकड़ी पर पड़ता है, फिर इन्हें अपनी आवश्यकता, सुरक्षा और उपयोग के अनुसार व्यवस्थित भी किया जा सकता है। पांडुलिपियों के शत्रु :
भुकड़ी (Mould) और फफूद नामक दो शत्रु हैं जो पांडुलिपियों में ही पनपते हैं । फफूद तो पुस्तकों में पनपने वाला वनस्पतीय-फंग्स (Fungus) होता है जबकि मोल्ड में शेष सभी अन्य सूक्ष्म अवयवाणु पाते हैं जो पांडुलिपियों में हो जाते हैं । यह पाया गया है कि ये 45° सें० (40 फा०) पर धीरे-धीरे बढ़ते हैं, पर 27-35 सें० (80-95° फा०) पर इनकी बहुत बढ़वार होती है। 38° सें० (100 फा०) से अधिक तापमान में इनमें से बहुत-से नष्ट हो जाते हैं, अतः इन्हें रोकने के लिए भंडारण भवन का तापमान 22-24° सें० (72-75° फा०) तक रखा जाना चाहिये । साथ ही नमी (ह्य मिडिटी 45-55 प्र० श० के बीच रहनी चाहिये ।।
यदि भंडारण-कक्ष को उक्त मात्रा में तापमान और नमी का अनुकूलन सम्भव न हो तो एक दूसरा उपाय थाईमल रसायन से वाष्प-चिकित्सा (Fumigation) है।
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