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प्रध्याय
शब्द और अर्थ की समस्या
पाण्डुलिपि-विज्ञान की दृष्टि से अब तक जो चर्चाएं हुई हैं वे महत्त्वपूर्ण हैं, इसमें मन्देह नहीं । पर, ये सभी प्रयत्न पाण्डुलिपि की मूल-समस्या अथवा उसके मूल-रूप तक पहुँचने के लिए सोपानों की भाँति थे। पाण्डुलिपि का लेखन, लिप्यासन, लिपि, काल या कवि मात्र से सम्बन्ध नहीं, उसका मूल तो ग्रन्थ के शब्दार्थों में है, अतः 'शब्द और अर्थ' पाण्डुलिपि में यथार्थतः सबसे अधिक महत्त्व रखते हैं।
शब्द और अर्थ में शब्द भी एक सोपान ही हैं । यह सोपान ही हमें कृतकार के अर्थ तक पहुंचाता है । शब्द के कई प्रकार के भेद किये गये हैं। शब्द भेद
___ एक भेद है : रूढ़, यौगिक तथा योगरूढ़ । यह भेद शब्द के द्वारा अर्थ-प्रदान की प्रक्रिया को प्रकट करता है । ये प्रक्रियाएँ तीन प्रकार की हो सकती हैं :
रूढ़-शब्द का एक मूल रूप मानना होगा, यह मूल शब्दे कुछ अर्थ रखता है, और उस शब्द के मूल रूप के साथ यह अर्थ 'रूढ़' हो गया है। सामान्यतः इस शब्द-रूप से मिलने वाले रूढ़ अर्थ के सम्बन्ध में कोई प्रश्न नहीं उठता कि 'घोड़ा' जो अर्थ देता है, क्यों देता है ? 'घोड़ा' शब्द-रूप का जो अर्थ हमें मिलता है, वह रूढ़ है क्योंकि इन दोनों का अभिन्न सम्बन्ध न जाने कब से इसी प्रकार का रहा है, अतः शब्द के साथ उसका अर्थ परम्परा या रूढ़ि से सर्वमान्य हो गया है । इसी प्रकार 'विद्या' भी रूढ़ शब्द है और 'बल' भी वैसा ही किन्तु 'विद्याबल', 'विद्यार्थी', 'विद्यालय' आदि शब्दों के अर्थ में प्रक्रिया कुछ भिन्न है। यहाँ रूढ़ शब्द तो है ही पर एक से अधिक ऐसे शब्द परस्पर मिल गये हैं, इनका योग हो गया है, अतः ये यौगिक हो गये हैं। इनमें से प्रत्येक शब्द अपने रूढ अर्थ के साथ परस्पर मिला है, और ये परस्पर मिलकर यानी 'यौगिक' होकर अर्थाभिव्यक्ति को वैशिष्ट्य प्रदान करते हैं । 'विद्या-बल' से उस शक्ति का अर्थ हमें मिलता है जो विद्या में अन्तनिहित है. और विद्या में से विद्या के द्वारा प्रकट हो रहा है।
तीसरी प्रक्रिया में दो या अधिक शब्द परस्पर इस प्रकार का योग करते हैं कि उनके द्वारा जो अर्थ मिलता है, वह निर्मायक शब्दों के रूढार्थों से भिन्न होता हुआ भी, रूप में यौगिक उस शब्द को, एक अलग रूढार्थ प्रदान करता है, यथा जलजे शब्द जल+ज (= उत्पन्न) दो शब्दों का 'यौगिक' है, यौगिक अर्थ में जल से उत्पन्न सभी वस्तुएं, मछली, मीप, मूंगा, मोती, इससे सांकेतिक होंगी, किन्तु इसका अर्थ 'कमल' नाम का पुष्प विशेष होता है। उसका यह अर्थ इस शब्द के रूप के साथ रूढ़ हो गया है। जल+ज का अर्थ जल से उत्पन्न मोती, सीप, घोंघे, सेवार प्रादि सभी ग्राह्य हों तो शब्द यौगिक रहेगा पर केवल पुष्प विशेष से इसका अर्थ रूढ़ि ने बाँध दिया है, अतः इसे 'योगरूढ़' कहा जाता है ।
शब्द के ये भेद अर्थ-प्रक्रिया को समझने में सहायक हो सकते हैं, पर ये भेद
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