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शब्द और अर्थ की समस्या/329
वास्तव में फेरवदार' का अर्थ शृगालिनी है, उसे न समझने के कारण फैखदार' आदि पाठ स्वीकर किया गया और चर्वण के अर्थ अनभिज्ञ रहने के कारण 'चखन' आदि मन-गढन्त पाठों की कल्पना करने पड़ी । इस प्रकार के पाठ-गढन्त के नमूने अन्यत्र भी मिलते हैं । ब्रजभाषा के पुराने टीकाकार सरदार कवि ने 'रसिक-प्रिया" की टीका में इस प्रकार का स्पष्ट उल्लेख किया है कि किस तरह लौच (रिश्वत) शब्द से परिचित न रहने के कारण लोगों ने किसी-किसी प्रति में लोंच कर दिया है । 'लोच' शब्द वाली पंक्तियाँ हैं :
"जालगि लोंच लुगाइन दै दिन नानन चावत साँझ पहाऊँ" 'रसिक प्रिया, केशवदास 5/12 प्र० सं० पृ० 75 नवल किशोर प्रेस, लखनऊ ।
पाषण-मद्रणालय, मथरा से प्रकाशित ग्वालकवि कृत 'कवि-हदय-विनोद' में एक शब्द 'बांधकीपौरि' मिला है । इस शब्द से परिचित न रहने के कारण 'ग्वाल रत्नावली' के सम्पादक ने 'बांधनी' और 'पौरि' दो भिन्न शब्दों की कल्पना करली और 'पौरि'की टिप्पणी दी है 'घर में' जो अर्थ की दृष्टि से नितान्त अशुद्ध है । संक्षिप्त शब्द-सागर' में भी इस शब्द के शुद्ध अर्थ को देखा जा सकता था । वहाँ इसका अर्थ इस प्रकार किया गया है : 'बांधनीपौर'-पशुत्रों के बांधने का स्थान (संक्षिप्त शब्द-सागर, पृ० 803) । बाधनीपौरि वाली पंक्तियाँ हैं—'फिर बांधनी-पौरि सुहावनि है (कविहृदयविनोद,) पृ० 89) । इसी प्रकार 'कविहृदयविनोद' के अन्य छन्द के पाठ की दुर्गति ही नहीं की गई वरन् उसका बड़ा विचित्र रूप देखने को मिला है :
"खासो है तमासो चलि देख सुखमा सों वीर, कुंज में भवासी है मयूर मंजु लाल की। चारु चांदनी की वर विमल विछावन पै,
चंदवा तन्यौ है, रविनाती रंगलाल की।" अंतिम अंश होना तो चाहिये-'री बनाती रंगलाल की ।' किन्तु सम्पादक जी ने उसे 'रविनाती' (सूर्य का नाती) समझा।
इस उद्धरण से और इसमें दिये उदाहरणों से अपरिचित शब्दों की पांडुलिपि-विज्ञान की दृष्टि से लीला सिद्ध हो जाती है । कुपठित
___इन रूपों के अतिरिक्त शब्द की दृष्टि से 'कूपठित' शब्द की ओर भी ध्यान जाना चाहिये । 'कुपठित' शब्द उन शब्दों को कहते हैं, जो लिपिकारं ने तो ठीक लिखे हैं किन्तु पाठक द्वारा ठीक नहीं पढ़े जा सके । एक शब्द था बस रेणु । 'त्रसरेणु' ही लिखा गया था किन्तु 'त्र' के चिमटे की दोनों रेखाएँ परस्पर मिल-सी रही थीं, अतः 'व' पढ़ी गई । 'व' पढने से अर्थ ठीक नहीं बैठ रहा था, तब सम्पादक ने आतिशी शीशे (Magnifying glass) की सहायता ली तो समझ में आया कि वह 'ब' नहीं त्र है, और 'कुपठित' शब्द सुपठित हो
1. यह शब्द 'फेरू-दार' होगा । फेख-शृगाल, अत: फेख-श्रगाल और दार-दारा, स्त्री---शृगालिनी 2 किशोरीलाल-सम्मेलन-पत्रिका (भाग 56, संख्या 2-3), पृ० 181-82.
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