Book Title: Pandulipi Vigyan
Author(s): Satyendra
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

View full book text
Previous | Next

Page 342
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 308 / पाण्डुलिपि - विज्ञान पहले सरस्वती की अर्चना करता हूँ फिर 'बसन्त विलास' की रचना करता हूँ, पर कहीं अपना नाम या अपनी नाम छाप नहीं दी । किन्तु दो शब्द कुछ इस रूप में प्रयुक्त हुए हैं कि उन्हें नाम छाप भी मान लिया जा सकता है। एक है 'त्रिभुवन', दूसरा 'गुणवन्त' । डॉ० गुप्त द्वारा सम्पादित ग्रन्थ में संख्या 3 के छन्द में बसन्त तरणा गुरण महमह्या सवि सहकार । त्रिभुवन जय जयकार पिकारव करई अपार || छंद - 17 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बनि बिलसई श्री नन्दन चन्दन चन्द चु मीत । रति अनइ प्रीतिसिउं सोहए मोहए त्रिभुवन चीतु ।। " इन दोनों छंदों में 'त्रिभुवन' कवि की नाम छाप जैसा लगता है, क्योंकि इसकी यहाँ अन्य सार्थकता विशेष नहीं। 'त्रिभुवन' शब्द यहाँ भी न हो तो भी अर्थ पूरा मिलता है । पहले में 'कोकिल जयजयकार' कर रहा है से अर्थ पूरा हो जाता है । त्रिभुवन या तीनों लोकों में जय-जयकार कर रहा है, से कोई विशेष अभिप्राय प्रकट नहीं होता इसी प्रकार दूसरे छंद में 'चित्त को मोहता' है से अर्थ पूर्ण है । 'त्रिभुवन' का 'चित्त मोहता' है में 'त्रिभुवन' कवि छाप से सार्थकता रखता प्रतीत होता है, 'तीनों लोकों का चित्त मोहित करता है' या मोहित होता है में कोई वैशिष्ट्य नहीं लगता । इसी प्रकार अन्तिम 84 वें छन्द में 'गुरणवन्त' शब्द आया है : इरिण परि साह ति रीझवी सीझवी आरणई ठांइ धन-धन ते गुणवन्त बसन्त विलासु जे गाई || इसमें अन्तिम पंक्ति का यह अर्थ अधिक सार्थक लगता है कि गुणवन्त नामक कवि कहता है कि वे धन्य हैं जो बसन्त विलास गायेंगे । इसका यह अर्थ करना कि 'वे गुणवन्त जो बसन्त विलास गायेंगे धन्य होंगे' उतना समीचीन नहीं लगता क्योंकि 'गुणवन्त' शब्द के इस अर्थ में कोई वैशिष्ट्य नहीं प्रतीत होता है । यदि यह बसन्त - विलास का अन्तिम छन्द माना जाये, जैसा डॉ० माताप्रसाद गुप्त ने माना है, तो काव्यान्त में गुणवन्त कवि की छाप हो, यह सम्भावना और बढ़ जाती है। यह प्रस्ताविक उक्ति (Hypothesis) ही है : क्योंकि · 1. किसी अन्य विद्वान् ने इन्हें नाम छाप के लिये स्वीकार नहीं किया । इसके रचनाकार कवि का नाम सोचने का प्रयास नहीं किया । 2. 'नाम' के अतिरिक्त जो इस शब्द का अर्थ होता है वह अर्थ उतना सार्थक भले 1. गुप्त, माताप्रसाद (डॉ०) बसंत विलास और उसकी भाषा, पृ० 19 2. वही पृ० 21 3. वही पृ० 29 ही न हो, पर अर्थ देता है ही । 3. ऊपर जो तर्क दिये गये हैं उनकी पुष्टि में कुछ और ठोस तर्क तथा प्रमाण होने चाहिये । 'त्रिभुवन' या 'गुणवन्त' नाम के कवियों की विशेष खोज करनी होगी । For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415