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322/पाण्डुलिपि-विज्ञान
तीसरी जगायपेट
477-78 ई.
दूसरी से चौथी
कूड़ा
571-72
पाली
छठी शताब्दी ऊष्णीष विजय धारणी पुस्तक की होयुजी (जापान)
मठ की प्रति के अन्त में दी गई वर्ण माला से
1वीं . शताब्दी मामलपुर
661 ई० क डेश्वर
मा
689 ई० झालरापाटन
8वीं शती मावलीपुर
837 ई. जोधपुर
861 8 61 पटिमाना घटिपाला
म
न
अ
अ.
४
11वीं शती उज्जैन
1122 ई० तर्षडिधी
11as ई. असम
शु
६
अ
12 वीं हस्राकाल (पूरी वर्णमाला से)
इसी प्रकार अन्य अक्षरों में भी अक्षारालंकरण मिलते हैं। ग्रन्थों में भी इनका विविध रूप में प्रयोग मिलता है, अतः अलंकरण के प्रभाव को समझकर ही 'शब्द-रूप' का निर्णय करना होगा। हस्तलेखों में से पांडुलिपियों में मिलने वाले अलंकरणों का कम संकलन हुआ है, किन्तु भारतीय शिलालेखों के अलंकरणों पर चर्चा अवश्य हुई है । डॉ० अहमद हसन दानी ने 'इंडियन पेलियोग्राफी' में इस पर व्यवस्थित ढंग से प्रकाश डाला है । इस सम्बन्ध में उनकी पुस्तक से एक चित्रफलक अलंकरण के स्वरूप को भारतीय लिपि में दिखाने के लिए यहाँ देने का हम अपने लोभ का संवरण नहीं कर सकते : (चित्र पृ. 323 पर)। (ए) नवरूपाक्षर युक्त-शब्द
कभी-कभी पांडुलिपि में हमें ऐसे शब्द मिल जाते हैं जिनमें कोई-कोई अक्षर अनोखे रूप में लिखा मिलता है। यह अनोखा रूप एक तो उस युग में उस अक्षर का प्रचलित रूप ही था, दूसरे लिपिकार की लेखनी से विकत होने के कारण और अनोखा हो गया। इन दोनों प्रकारों पर 'लिपि समस्या' वाले अध्याय में चर्चा हो चुकी है।
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