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306/पाण्डुलिपि-विज्ञान
ब्रज साहित्य के इतिहास से ये पंक्तियाँ उद्धृत करना समीचीन प्रतीत होता है ।।
"कुछ विद्वानों की यह धारणा है कि यह शृंगारमंजरी बड़े साहिब अकबर साहि की लिखी हुई है, क्योंकि पुस्तक के बीच-बीच में बड़े साहिब का उल्लेख है, परन्तु ध्यान से देखने पर यह बात स्पष्ट हो जाती है कि यह ग्रन्थ चिन्तामणि ने बड़े साहिब अकबर साहि के लिये लिखा । इसके अन्त का उदाहरण है :
'इति श्रीमान् महाराजधिराज मुकुटतटघटित मनि प्रभाराजिनी राजित चरणराजीवसाहिराज गुरुराज तनुज बड़े साहिब के अकबर साहि विरचिता श्रृंगार मंजरी समाप्ता ।"
निश्चय है कि लेखक स्वयं अपने लिए इस प्रकार से विशेषण नहीं लिख सकता था। ये विशेषरण बड़े साहिब के लिए 'चिन्तामणि' ने ही प्रयुक्त किये होंगे । 'शृंगार मंजरी' के प्रारम्भिक छंदों में 'चिन्तामणि' का नाम भी आया है, यथा :
सोहत है सन्तत विबुधन मौं मंडित कहे कवि चिन्तामनि सब सिद्धिन को घरु । पूरन के लाख अभिलाष सब लोगनि के जाके पंचसाख सदा लानत कनक झरु ।। सुन्दर सरूप सदा सुमन मनोहर है जाके दरसन जग नैननि को तापहरु ।। . पीर पातसाहि साहिराज रत्नाकर ते प्रकटित भये हैं बड़े साहिब कल्पतरु ।
इन्हीं बड़े साहिब को 'शृंगार मंजरी' के रचयिता के रूप में प्रतिष्ठित करते हुए चिन्तामणि ने लिखा है
"गुरुपद कमल भगति मोद मगन ह सुवरन जुगल जवाहिर खचत है" "निज मत ऐसी" "भाँति थापित करत जाते औरनि के मत लघु लागत लचत है" । "सकल प्रवीन ग्रन्थ लपनि विचारि कहे चिन्तामणि रस के समूहन सचत है"। "साहिराज नन्द बड़े साहिब रसिकराज 'शृंगार मंजरी' ग्रन्थ रूचिर रचत है" ।
इससे प्रकट होता है कि यह ग्रन्थ बड़े साहिब के लिये उनके नाम पर चिन्तामणि ने ही लिखा । अपने आश्रयदाता के नाम से ग्रन्थ प्रारम्भ और समाप्त करने की परिपाटी उस समय प्रचलित थी। डॉ० नगेन्द्र की मान्यता है कि "यह ग्रन्थ बड़े साहिब ने मूलतः आंध्र की भाषा में रचा, फिर संस्कृत में अनूदित हुआ। उसकी छाया पर चिन्तामणि ने रचा।" यह भी सम्भव है।
ऐसे ही यह प्रश्न उठा है कि 'ममारिख' और 'मुबारक' छाप वाले कवि दो हैं या एक ही हैं' । एक ही पद्य में एक संग्रह में 'मुमारिख' का प्रयोग हुआ है और दूसरे संग्रह में एक छाप है 'मुबारक' तो यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि दोनों नाम एक ही के हैं। 'मुबारक' ही उच्चारण-भेद से 'मुमारख', या 'ममारिख' हो गया है, किन्तु उक्त प्रमाण अपने आपमें प्रबल नहीं है। कुछ और भी प्रमाण ढूंढने होंगे कि तर्क अकाट्य हो जाय । पूरक कृतित्त्व में भी कवि विषयक भ्रान्ति हो सकती है।
___ चतुर्भुजदास कृत 'मधुमालती' में दो पूरक कृतित्त्व हुये हैं : 1-माघव नाम के कवि द्वारा, 2-गोयम (गौतम) कवि द्वारा ।
पूरक कृतित्त्व में किसी पूर्व के या प्राचीन ग्रन्थ में किसी कवि को कोई कमी दिखाई
1. सत्येन्द्र, (डॉ.) ब्रज साहित्य का इतिहास, पृ. 249 ।
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