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शब्द और अर्थ की समस्या/311
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पांडुलिपि-विज्ञानार्थी के लिए सीधे-सीधे उपयोगी नहीं हैं, और पांडुलिपि-विज्ञान की दृष्टि मे सीधे-सीधे ये भेद कोई समस्या नहीं उठाते । आधुनिक भाषा-वैज्ञानिकों के लिए प्रत्येक भेद समस्याओं से युक्त है । 'शब्द' का रूप और उसके साथ अर्थ की रूढ़ता स्वयं एक ममस्या है।
फिर व्याकरण की दृष्टि से संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया ग्रादि के भेद भी हमें यहाँ इष्ट नहीं, क्योंकि इनका क्षेत्र भाषा और उसका शास्त्र है।
शब्दों के भेद विविध शास्त्रों के अनुसार और आवश्यकता के अनुसार किये जाते हैं । यहाँ संक्षेप में इन विविध भेदों की संकेत रूप में एक तालिका दे देना उपयोगी होगा । ये इस प्रकार हैं :शास्त्र एवं विषय
शब्द-भेद 1. व्याकरण, रचना एवं गठन
1. रूढ़, 2. योगिक, (अंतःकेन्द्रित) एवं 3.
___ योगरूढ़ (बहिःकेन्द्रित) 2. व्याकरण : भाषा-विज्ञान
1. समास शब्द, 2. पुनरुक्त शब्द, 3. अनुबनावट
करण मुलक, 4. अनर्गल शब्द, 5. अनुवाद
युग्म शब्द, 6. प्रतिध्वन्यात्मक शब्द । .. व्याकरण+भाषा-विज्ञान : शब्द 1. तत्सम, 2. अर्द्ध-तत्सम, 3. तद्भव, विकास
4. देशज, 5. विदेशी। 4. व्याकरण : कोटिगत
(क) 1. नाम, 2. आख्यात, 3. उपसर्ग,
4. निपात । कोटिगत (शब्दभेद)
(ख) 1. संज्ञा, 2. सर्वनाम, 3. विशेषण, 4. क्रिया, 5. क्रिया विश्लेषण, 6. समुच्चय बोधक, 7. सम्बन्ध सूचक, 8. विस्मयादि
बोधक। 5. प्रयोग सीमा के आधार पर
1. काव्य शास्त्रीय, 2. संगीतशास्त्रीय (विशेषतः पारिभाषिक)
3. सौन्दर्यशास्त्रीय, 4. ज्योतिषशास्त्रीय
आदि विषय सम्बन्धी। 6. अर्थ-विज्ञान
1. समानार्थी (पर्यायवाची), 2. एकार्थवाची, 3. नानार्थवाची (अनेकार्थी), 4.समान
रूपी, भिन्नार्थवाची (श्लेषार्थी) आदि । 7. काव्य-शास्त्र
वाचक, लक्षक और व्यंजक
हमारा क्षेत्र है पांडुलिपि में आये या लिखे गये शब्द, जो लिखे गये वाक्य के अश हैं, और जिनसे मिलकर ही विविध वाक्य बनते हैं, जिनकी एक वृहद् श्रृंखला ही ग्रन्थ बना देती है । ग्रन्थ रचना में प्रयुक्त शब्दावली निश्चय ही सार्थक होती है । अर्थ-ग्रहण शब्द-रूप पर निर्भर करता है, जैसे-शब्द हो, 'मानुस' हों तो' तो इनका अर्थ होगा कि 'यदि मैं मनुष्य
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