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काल निर्धारण/291
वैसा वर्णन उस काल में रहने वाला कवि ही कर सकता है। 'बसन्त विलास' से उसकी वर्तमानकालिकता प्रकट है । स्पष्ट है कि एक प्रकरण का मेल इतिहास काल-क्रम वाली एक घटना से स्थिर किया गया, तब काल-विषयक निष्कर्ष पर पहुँचा गया।
इस काल-निर्धारण में भाषा का साक्ष्य बाधक प्रतीत होता था क्योंकि गुप्त से पूर्व दो विद्वानों ने भाषा के साक्ष्य पर ही 1400-1425 के बीच काल-निर्धारित किया था, अतः इस तर्क को इस सिद्धान्त से काट दिया कि 'प्रतिलिपि परम्परा' में भाषा अधिकाधिक आधुनिक होती जाती है ।
स्पष्ट है कि सांस्कृतिक बाह्य साक्ष्य + इतिहास-सिद्ध कालक्रमयुक्त घटना से यहाँ निष्कर्ष निकाला गया है।
जिस प्रकार समाज और संस्कृति को उक्त रूप में काल-निर्धारण के लिये साक्ष्य बनाया जा सकता है, उसी प्रकार धर्म, राजनीति, शिक्षा, आर्थिक तत्त्व, ज्योतिष आदि भी अपनी-अपनी तरह से काल सापेक्ष होते हैं, अतः काल-निर्धारण में मात्र किसी एक प्राधार से काम नहीं चल पाता, जितनी भी बातों में काल-सूचक बीज होने की सम्भावना हो सकती है, उनकी परीक्षा की जाती है। डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने पाणिनि का काल-निर्णय करने में साहित्यिक तर्क (Literary argument),1 मस्करी परिव्राजक : एक. विशेष शब्द,' बुद्ध धर्म, श्राविष्ठा प्रथम नक्षत्र, नन्द से सम्बन्ध, राजनीतिक सामग्री (data), यवनानी लिपि का उल्लेख, पशु विषयक कथान्त स्थान नाम, क्षुद्रक-मालय' पाणिनि और कौटिल्य, सिक्कों का साक्ष्य, व्यक्ति-नाम (गोत्रनाम, एवं नक्षत्र-नाम के आधार पर), पाणिनि और जातक, पाणिनि तथा मध्यम पंथ आदि की परीक्षा की। स्पष्ट है कि काल-निर्धारण में एक नहीं अनेक प्रकार के साक्ष्यों की परीक्षा करनी होती है। पहले के तर्कों और प्रमाणों की समीचीनता सिद्ध या प्रसिद्ध करनी होती है । बाह्य साक्ष्य में से बहुत से अंतरंग साक्ष्य से गुंथे हुए हैं । अंतरंग साक्ष्य
अंतरंग साक्ष्य को दो पक्षों में बाँट सकते हैं, एक है स्थूल पक्ष, दूसरा है सूक्ष्म । स्थूल पक्ष का सम्बन्ध उन भौतिक वस्तुओं से होता है जिनसे ग्रंथ निर्मित हुआ है। इसे वस्तुगत पक्ष कह सकते हैं, जैसे-ग्रन्थ का कागज, ताड़पत्र आदि । उसका आकार-प्रकार भी कुछ अर्थ रखते ही हैं । स्याही भी इसमें सहायक हो सकती है। इसी स्थूल पक्ष का एक और पहलू है : लेखन । लेखन व्यक्तिगत पहल माना जा सकता है। व्यक्ति अर्थात् लेखक
1. वस्तुत: यह तर्क गोल्डस्टुकर के इस तर्क को काटने के लिये दिया है कि पाणिनि आरण्यक, उपनिषद,
प्रातिशाख्य, वाजसनेयी सहिता, शतपथ ब्राह्मण, अथर्ववेद और षड्-दर्शन से परिचित नहीं थे, अत: यास्क के बाद पाणिनि हुए थे।
यह सिद्ध करने के लिये कि इस व्यक्ति से पाणिनि परिचित थे, अत: इसके बाद ही हए। 3. गोल्डस्टकर के इस तर्क का खंडन करने के लिये कि पाणिनि बुद्ध से पूर्व हुए।
ज्योतिष पर आधारित साक्ष्य । 5. ऐतिहासिक आधार । 6. एक विशेष जाति संबंधी । .7. गणों का संघ एवं सैन्य संगठन तथा युद्ध-विद्या सम्बन्धी। 8. कुछ विशिष्ट शब्दों से दोनों परिचित थे, इस आधार पर काल निर्धारण में सहायता ।
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