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286/पांडुलिति-विज्ञान
'कृति' में काल का संकेत न होने पर अन्त साक्ष्य के किसी सूत्र को पकड़ कर इतिहास की सहायता से काल-निर्धारण के रोचक उदाहरण मिलते हैं । एक है नाट्य-शास्त्र के काल-निर्णय की समस्या । अनेक विद्वानों ने अपनी तरह से 'नाट्य-शास्त्र' का रचनाकाल निर्धारित करने के प्रयत्न किये हैं, पर कारणे महोदय ने प्रो० सिल्वियन लेवी का एक उदाहरण दिया है कि उन्होंने 'नाट्य-शास्त्र' में सम्बोधन सम्बन्धी शब्दों में 'स्वामी' का आधार लेकर और चष्टन जैसे भारतीय शक शासक के लेख में चष्टन के लिये 'स्वामी' का उपयोग देखकर यह सिद्ध किया कि भारतीय 'नाट्य-कला' का प्रारम्भ भारतीय शकों के क्षत्रपों के दरबारों से हुअा-अर्थात् विदेशी शक-राज्यों की स्थापना से पूर्व भारतवासी नाटक से अनभिज्ञ थे । नाट्य-शास्त्र में 'स्वामी' शब्द का सम्बोधन भी शक शासकों के दरबारों में प्रचलित शिष्ट प्रयोगों से लिया गया है। इन क्षत्रपों के राज्यकाल में ही प्राकृत भाषामों का स्थान संस्कृत लेने लगी-या, भाषा विषयक प्रवृत्ति का परिवर्तन विदेशी शासन का प्रभाव था जो नाट्य-शास्त्र से विदित होता है । काणे महोदय की यह टिप्पणी इस विषय पर दृष्टव्य है :
"Inspite of the brilliant manner in which the arguments are advanced, and the vigour and confidence with they are set forth, the theory that the Sanskrit theatre came into existence at the court of the Kshatrapas and that the supplanting of the Prakrits by classical sanskrit was led by the foreign Kshatrapas appears, to say the least, to be an imposing structure built upon very slender foundations"l
इससे यह सिद्ध होता है कि इतिहास की सहायता लेते समय भी बहुत सावधानी बरतनी चाहिये । यह भी परीक्षा कर लेनी चाहिये कि कहीं प्रक्रिया उलटी तो नहीं । चष्टन के लेख में 'स्वामी' का प्रयोग कहाँ से कैसे आ गया ? क्या यह शक शब्द है ? जब ऐसा नहीं तो स्पष्ट है कि लेखक या सूत्रधार या शिल्पकार, जिसने चष्टन का लेख तैयार किया या उत्कीर्ण किया वह, भारतीय नाट्य-शास्त्र से परिचित था, वहीं से सम्बोधन के लिये संस्तुत शब्दों में से 'स्वामी' शब्द को लेकर उसने चष्टन के लिये उसका प्रयोग किया। यह स्थिति अधिक संगत है।
___अतः यह भी देखना होगा कि किसी स्थापना के लिये क्या कोई अन्य विकल्प भी है, यदि कोई अन्य विकल्प भी हो तो उसका समाधान भी कर दिया जाना चाहिये ।।
इतिहास के कारण कवि द्वारा दिये काल संकेत को लेकर संकट या झमेले भी खड़े हो सकते, हैं, इसे भी ध्यान में रखना होगा। इसके लिये 'जायसी' के पद्मावत का उदाहरण महत्त्वपूर्ण है। इसको डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल के शब्दों में उनके ग्रन्थ 'पद्मावत' के मूल और सजीवनी भाष्य की भूमिका से उद्धृत किया जा रहा है :
“जायसी कृत दूसरा महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक उल्लेख पद्मावत में है । उसमें सूरवंशी सम्राट शेरशाह का शाहे वक्त के रूप में वर्णन किया गया गया है :
सेरसाहि दिल्ली सुलतानू । चारिउ खण्ड तपइ जस भानू । 1311
1.
Kane, P.V.-Sahityadarpan (Introduction). P. VIII.
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