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182/पाण्डुलिपि-विज्ञान -:
अब चित्रलिपि के चित्र केवल चित्र ही नहीं रहे, वे प्रतीक हो गए। इसे भावमूलक या (diographic) भी कहा जाता है । ये ही आगे विकसित होकर-- . .:. 6. ध्वनि प्रतीक हो गए । अब 'शृङ्गीसर्प', शृङ्गीसर्प नहीं रहा वह वर्णमाला की व्यंजन ध्वनि 'फ' का चिह्न हो गया । इस प्रकार चित्रलिपि ध्वनि की वर्णमाला की ओर अग्रसर हुई। किन्तु, चित्र ध्वनि-प्रतीक बने, अपने चित्र रूप को उसने फिर भी कुछ काल तक सुरक्षित रखा, पर अव तो वे लिपि का रूप ग्रहण कर रहे थे । अतएव अधिकाधिक उपयोग में आने के कारण उनकी आकृति में भी विकास हुआ । अब एक मध्यावस्था आयी । इसमें चित्र भी रहे, और चित्रों से विकसित वे ध्वनि-प्रतीक भी सम्मिलित हुए जो चित्रों से वर्णचिह्नों के रूप में परिणत हो रहे थे ।
इसी वर्ग में वह भाषा भी आती है जिसमें वर्णमाला न होकर शब्द-माला होती है, और उन्हीं से अपने विविध भावों को व्यक्त करने के लिए शब्द-रूप बनाये जाते हैं।
7. अब वह विकसित स्थिति प्रायी जहाँ 'चित्र' पीछे छूट गये, ध्वनि-चिह्न मात्र काम में आने लगे । अब लिपि पूर्णतः ध्वनि-मूलक हो गयी।
ध्वनिमूलक वर्णमाला के दो भेद होते हैं : एक-अक्षरात्मक (Syllable) दूसरी-वर्णात्मक (alphabetic)
देवनागरी वर्णमाला अक्षरात्मक है क्योंकि 'क' = 'क+अ', अतः यह अक्षर या Syllabic है । रोमन वर्णमाला वर्णात्मक है क्योंकि K = क् जो वर्ण या (alphabet) है । हिन्दी की 'क' ध्वनि के लिए रोमन वर्ण K में a मिलाना होता है : क = Ka | इसमें 'a' =अ। आज विश्व में हमें तीन प्रकार की लिपियां मिलती हैं
एक-वे जिनमें एक लिपि-चिह्न एक शब्द का द्योतक होता है ।
- यह चित्र लिपि का अवशेष है या प्रतिस्थानापन्न है। दूसरी-वे, जो अक्षरात्मक हैं, तथा
तीसरी-वे जो वर्णात्मक हैं । पर, ऐसा नहीं मान लेना चाहिये कि चित्रलिपि का उपयोग अब नहीं होता। अमरीका की एक आदिम जाति की चित्रलिपि का एक उदाहरण डॉ० भोलानाथ तिवारी ने अपने ग्रन्थ में दिया है
HOO6 चित्र लिपि (रेड इंडियन सरदार का संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के राष्ट्रपति के नाम पत्र)
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